लखनऊ
उत्तर प्रदेश के पूर्व उपमुख्यमंत्री दिनेश शर्मा ने कहा कि मस्तिष्क को संतुलित करना और अपने लक्ष्य को निर्धारित करना ही सफलता का मूल मंत्र है। इसके साथ ही आत्मसंतुष्टि यानी जो कुछ आपके पास है उसी पर संतोष करना भी मानसिक तनाव को कम करने का अच्छा तरीका है। उनका कहना था कि प्रतियोगी होना बहुत अच्छी बात है किंतु प्रतियोगिता के परिणाम पर हतोत्साहित होना ही मानसिक तनाव का कारण बन जाता है।
इंटर स्कूल चिल्ड्रेंस कंटेस्ट एंड मेंटल हेल्थ अवेरनेस कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि यहां आयोजित विश्व मानसिक मेला या त्योहार बच्चों को काफी आगे तक ले जाएगा। पहले की शिक्षा में मानसिक भार इसलिए बढ़ जाता था क्योंकि आज की शिक्षा का निर्धारण माता पिता ही करते हैं। परीक्षा आने पर बच्चे नित्य की पढ़ाई का लगभग दो गुना समय पढऩे के लिए उत्साहित करते हैं इसके बावजूद माता पिता उन्हें कुछ और पाठ पढऩे का निर्देश दिया करते हैं।यहां आयोजित कार्यक्रम में सुखद अनुभूति इसलिए हुई है कि इसमें बच्चों को सफल जीवन जीने की कला सिखाई गई है।
अपनी पढ़ाई का अनुभव बताते हुए डॉ. शर्मा ने कहा कि जब परीक्षा आती थी तो आठ बजे शाम के बाद पढऩा बन्द कर देते थे तथा टीवी के सामने कोई मनोरंजन कार्यक्रम देखते देखते सो जाते थे। उन्होंने कहा कि परीक्षा के दिनों में भी वे थोड़ा खेलकूद इसलिए कर लेते थे कि उसके बाद उनका मस्तिष्क कुछ स्वस्थ हो जाता था।उन्होंने यह भी बताया कि परीक्षा के दिनों में भी वे सुबह चार बजे उठने की जगह पांच या साढ़े पांच बजे उठते थे। कुछ बुलेट प्वाइन्ट पर नजर डालने के बाद जब परीक्षा देने जाते थे तो पेपर बहुत अच्छा होता था।लोग इस पर आश्चर्य ही व्यक्त नहीं करते बल्कि अच्छे नम्बर लाने का तरीका भी पूंछते थे। उनका कहना था कि चिंता को छोडक़र अच्छे वातावरण में अपने को अभ्यस्त करना चाहिए।उनका कहना था किसी काम की सफलता के लिए मस्तिष्क को आराम देना आवश्यक है। उन्होंने अंत में बच्चों को सलाह दी कि वे बड़े बनने का न केवल सपना देखें बल्कि शुरू से ही उसे हासिल करने का प्रयास करेंगे तो उन्हें आत्मसुख की अनुभूति होगी और मंजिल तक पहुंचना उनके लिए बहुत आसान होगा। इस अवसर पर डॉ. गिरीश गुप्ता, डॉ. एके शुक्ला, प्रबंधक अनिल अग्रवाल सहित अन्य गणमान्य लोग उपस्थित थे।