- द्वारका में श्रावण मास पर चल रहे ‘गागर में सागर’ प्रवचन में बोले शंकराचार्य सदानंद सरस्वती
द्वारका। द्वारका में श्रावण मास पर चल रहे ‘गागर में सागर’ प्रवचन में सोमवार को शारदापीठाधिश्वर जगद्ïगुरु शंकराचार्य सदानंद सरस्वती ने कहा कि सत्यनारायण पूजा में गणपति के लिए सड़ी हुई सुपारी कम कीमत में ले आना यह धर्म कपट है। यही वजह है ने, श्रीमदï् भागवत कथा हमको यह कपट रहित धर्म सिखाती है। कई बार हम इच्छा पूर्ति के बाद धर्माचरण भूल जाते हैं। धर्म का पालन करने वाले भक्त का कल्याण करने उसको निर्धन बना देते हैं। उन्होंने कहा कि अहंकारवश धन के मद में धनी व्यक्ति धर्म पालन के लिए नौकर भेज देता है। लेकिन निर्धन हो जाने पर दौड़ा-दौड़ा भक्ति में पुन: लग जाता है। शंकराचार्य ने कहा कि प्राय:धन होने पर भी धनवान भक्त के मन में शांति नहीं मिलती और निर्धन भी आनंद में जीवन व्यतीत करता है। पहले मन धन में जाता था इसलिए अशांत होता था। उन्होंने कहा कि फल की प्राप्ति का अधिकार केवल भगवान के पास है, ईश्वर की कृपा होने पर ही फल मिलता है। फल प्राप्ति में विलंब हो फिर भी हमें आराधना विधिपूर्वक करते रहना चाहिए। उन्होंने कहा कि हमारा कर्म कभी निरर्थक नहीं जाता। संपूर्ण शरणागति के साथ पूर्ण श्रद्धा हो तो भगवान मनुष्य का सारथी भी बन जाता है।