चेन्नई। मद्रास हाईकोर्ट ने विधवा महिलाओं के मंदिर में जाने से रोकने वाली प्रथा की कड़ी निंदा की है। कोर्ट ने कहा की कानून से चलने वाले इस सभ्य समाज में कभी ऐसा नहीं हो सकता। कोर्ट ने यह टिप्पणी थंगामणि नाम की एक महिला याचिकाकर्ता के केस पर की।दरअसल, तमिलनाडु के इरोड जिले में 9 और 10 अगस्त को होने वाले त्योहार होना है। विधवा होने के कारण महिला ने पेरियाकरुपरायन मंदिर में पूजा के लिए पुलिस प्रोटेक्शन की मांग की है।कोर्ट ने कहा कि अभी भी विधवा महिलाओं के मंदिर में जाने को अपवित्र समझा जाता है, राज्य में पुरानी मान्यता अभी भी प्रचलित है। यह काफी दुर्भाग्यपूर्ण है। हालांकि, समाज सुधारक ऐसी बेतुकी प्रथाओं को तोड़ने की कोशिश कर रहे हैं, जो अभी भी राज्यों को कुछ गांवों में जारी हैं। ये प्रथा पुरुषों ने अपनी सुविधाओं के लिए बनाई है। ये प्रथा सिर्फ महिलाओं का अपमान करती है, क्योंकि उसने अपने पति को खो दिया। जस्टिस आनंद वेंकटेश ने कहा कि महिला का अपना एक स्टेटस है और अपनी एक पहचान है। महिला के मैरिटल स्टेटस के आधार पर उसे किसी तरह से कम नहीं आंका जा सकता ना ही अपमान किया जा सकता है।कोर्ट ने कहा कि सभ्य समाज में ऐसा नहीं चल सकता जहां पर कानून का शासन हो। जो भी व्यक्ति किसी विधवा को मंदिर में जाने से रोकता है ऐसे में उस पर कानून के अनुसार कार्रवाई की जानी चाहिए।