द्वारका। श्रावण मास में चल रहे ‘गागर में सागर’ प्रवचन में बुधवार को शारदापीठाधिश्वर शंकराचार्य सदानंद सरस्वती ने कहा कि हम यह मानते हैं कि झूठ का आश्रय नहीं लेना चाहिए, बेईमानी नहीं करनी चाहिए, दूसरों की वस्तु चोरी करना पाप है फिर भी हम कभी झूठ भी बोल देते हैं इस समस्या का उपाय क्या है? मनुष्य जन्म से पहले हम अनेक योनि में जन्म ले चुके होते हैं। हजारों जन्मों का कुसंस्कार हमारे चित्त पर लिपट गया है। अज्ञान और अंधकार रूपी माया का यह आवरण मन पर आच्छादित हो गया है उसे स्वच्छ करने में मलिन आवरण दूर करने के लिए हमें तत्पश्चर्या करनी पड़ती है। हम दृढ़ निश्चय कर लें और पूरे मन से यह प्रयास करें तो सत्य मार्ग पर चलकर इस अज्ञानरूपी आवरण को दूर कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि इस संसाररूपी महासागर- भवसागर में छूटने की तीव्र आकांक्षा होती है और हमारी दृढ़ निष्ठा परमात्मा के प्रति विकसित होती है तो सद्ïगुरु, संत-ऋषि, सिद्ध महात्मा आदि का आशीर्वाद मिल जाए तो शीघ्रता से हम इस प्रपंच से बच सकते हैं। नाम स्मरण से हमारा मन पवित्र होता है और चित्त को विधेयात्मक-सकारात्मक चिंतन का मार्ग मिल जाता है तो त्याग, दया और करुणा का भाव बढ़ने लगता है तो चित्त में सदभाव बढ़ता है और परमात्मा की कृपा से मुक्ति का फल प्राप्त होता है।