- हाईकोर्ट जमानत याचिका पर गर्मियों की छुट्टियों से पहले फैसला करे
नई दिल्ली । सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि किसी नागरिक की आजादी के संबंध में एक-एक दिन अहम है। सुप्रीम कोर्ट ने जमानत याचिका पर सुनवाई के दौरान ये टिप्पणी की। दरअसल दिल्ली शराब घोटाले में आरोपी अमनदीप सिंह ढल्ल ने अपने वकील कपिल सिब्बल के माध्यम से याचिका दायर की। याचिका में कहा गया कि दिल्ली हाईकोर्ट बीते कई महीनों पर ढल्ल की जमानत याचिका पर सुनवाई कर रहा है, लेकिन अभी तक फैसला नहीं किया गया है। अब सुप्रीम कोर्ट ने अहम टिप्पणी करते हुए हाईकोर्ट को जल्द जमानत याचिका पर फैसला करने का निर्देश दिया है। याचिका में कहा गया कि याचिकाकर्ता की नियमित जमानत पर हाईकोर्ट 40 मौकों पर सुनवाई कर चुका है और अब मामले को 8 जुलाई तक स्थगित कर दिया है। पीठ को बताया गया कि बीते साल जुलाई में नियमित जमानत के लिए हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई थी। इस पर जस्टिस बीआर गवाई और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने कहा कि ‘40 सुनवाई के बाद भी आप नियमित जमानत पर फैसला नहीं कर पा रहे हैं। जो मामले नागरिकों की आजादी से जुड़े हैं, उनमें एक-एक दिन मायने रखता है। नियमित जमानत का मामला बीते 11 महीनों से लंबित है और इससे याचिकाकर्ता की आजादी का हनन हो रहा है।’सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट से कहा कि जमानत याचिका पर गर्मियों की छुट्टियों से पहले फैसला करें। हाईकोर्ट में 3 जून से गर्मियों की छुट्टियां शुरू हो जाएंगी और आखिरी कार्यदिवस 31 मई होगा। ढल्ल दिल्ली शराब घोटाले में आरोपी है, जिसकी जांच सीबीआई और ईडी द्वारा की जा रही है। इससे पहले ट्रायल कोर्ट ने ढल्ल को जमानत देने से इनकार कर दिया था। जिसके खिलाफ ढल्ल ने हाईकोर्ट का रुख किया था। जांच एजेंसियों के अनुसार, ढल्ल शराब नीति को बनाने, आम आदमी पार्टी को लाभ पहुंचाने में शामिल था। दिल्ली सरकार ने 17 नवंबर 2021 को शराब नीति लागू की थी और भ्रष्टाचार के आरोपों के बाद सितंबर 2022 को शराब नीति को वापस ले लिया गया था।
संविधान पीठ का फैसला कम संख्या वाली पीठ को मानना बाध्यकारी
सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा है कि जजों की कम संख्या वाली पीठों पर संविधान पीठ का फैसला बाध्यकारी होगा। सुप्रीम कोर्ट ने अपने अप्रैल 2022 के एक फैसले का जिक्र करते हुए यह टिप्पणी की। 7 अप्रैल 2022 के एक फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि कोई पंचायत उस जमीन पर स्वामित्व का दावा नहीं कर सकती, जो हरियाणा के भूमि कानून के तहत असली मालिकों से मंजूर अधिकतम सीमा तक ली गई हो। शीर्ष अदालत ने कहा था कि पंचायतें उन जमीनों का सिर्फ प्रबंधन और नियंत्रण कर सकती हैं और उन पर स्वामित्व का दावा नहीं कर सकतीं। पीठ ने कहा कि भूमि मालिकों को जमीन वापस भी नहीं की जा सकती क्योंकि जमीन का अधिग्रहण वर्तमान की जरूरतों के साथ ही भविष्य की जरूरतों को ध्यान में रखकर किया जाता है। अब सुप्रीम कोर्ट ने अपने अप्रैल 2022 के फैसले की समीक्षा करते हुए कहा कि संविधान पीठ द्वारा निर्धारित कानून को अनदेखा करना और उसके विपरीत दृष्टिकोण रखना एक गलती होगी। सुप्रीम कोर्ट में अप्रैल 2022 के फैसले की समीक्षा की मांग को लेकर याचिका दायर की गई थी। इस याचिका पर गुरुवार को सुनवाई करते हुए जस्टिस बी आर गवई और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने कहा कि हमारे विचार से संविधान पीठ के फैसले को नजरअंदाज करने से इसकी मजबूती कमजोर होगी और सिर्फ इस आधार पर फैसले की समीक्षा की अनुमति दी जा सकती है। सुप्रीम कोर्ट अब 7 अगस्त को समीक्षा याचिका पर सुनवाई करेगा।