व्यक्ति को एक धर्म से नहीं बांध सकते, यह संवैधानिक गारंटी
तिरूवनंतपुरम। केरल हाईकोर्ट ने गुरुवार को धर्म परिवर्तन से जुड़े एक मामले में सुनवाई की। इसमें कहा- एजुकेशन सर्टिफिकेट में जाति या धर्म परिवर्तन की मांग को इसलिए नहीं ठुकराया जाना चाहिए क्योंकि इसके लिए कोई कानूनी प्रावधान नहीं है।जस्टिस वीजी अरुण ने कहा कि धर्म परिवर्तन के बाद संस्थानों को सर्टिफिकेट में आवश्यक सुधार करने होंगे। उन्होंने कहा भले ही स्कूल सर्टिफिकेट में धर्म परिवर्तन के आधार पर नाम बदलने का कोई नियम नहीं है। इसका मतलब ये नहीं है कि किसी व्यक्ति को उसके जन्म के आधार पर किसी एक धर्म से बांध दिया जाए।हाईकोर्ट ने कहा कि संविधान के आर्टिकल 25 (1) के तहत किसी भी व्यक्ति को अपनी पसंद का कोई भी धर्म अपनाने की गारंटी दी गई है। अगर कोई व्यक्ति इस आजादी का प्रयोग करके किसी अन्य धर्म को अपनाता है तो उसके दस्तावेजों में सुधार करना जरूरी है। धर्म परिवर्तन से जुड़ी ये याचिका एक कपल ने दायर की थी। ये कपल हिंदू था, लेकिन साल 2017 में इन्होंने क्रिश्चियन धर्म अपना लिया।धर्म परिवर्तन के बाद याचिकाकर्ता ने नए धर्म को दर्शाने के लिए स्कूल प्रमाणपत्रों में संशोधन की मांग की, लेकिन शिक्षा अधिकारी ने नियमों के अभाव का हवाला देते हुए यह मांग खारिज कर दी थी।याचिकाकर्ता ने इसके खिलाफ संविधान के आर्टिकल 226 का हवाला देते हुए हाईकोर्ट में चुनौती दी।मामले में सरकारी वकील ने दलील को धर्म परिवर्तन से जुड़े सरकारी आदेशों के खिलाफ बताया। हालांकि, कोर्ट ने इन दलीलों को खारिज कर दिया। कोर्ट ने शिक्षा अधिकारियों के आदेश को रद्द करते हुए एक महीने के भीतर याचिकाकर्ताओं के स्कूल सर्टिफिकेट में बदलाव करने का निर्देश दिया है।