वेद बिना मति नहीं और गाय बिना गति नहीं: नायब सिंह सैनी
महर्षि दयानन्द सरस्वती की 200वीं जयंती के अवसर पर गुरुकुल कुरुक्षेत्र में आयोजित आर्य महासम्मेलन में उमड़ा भारी जनसैलाब
भारतीय संस्कृति में वेद और गाय का विशेष महत्व है। हमारे यहां “वेद बिना मति नहीं और गाय बिना गति नहीं” की कहावत प्रसिद्ध है। आर्य समाज के संस्थापक महर्षि दयानन्द सरस्वती ने समाज में जहां वेदों का व्यापक प्रचार-प्रसार किया, वहीं गाय के महत्व को उजागर करते हुए एक पूरी पुस्तक “गोकरुणानिधि” भी लिखी और समाज को गाय की उपयोगिता समझाई। उक्त विचार हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ने महर्षि दयानन्द सरस्वती की 200वीं जयंती के अवसर पर गुरुकुल कुरुक्षेत्र में आयोजित “आर्य महासम्मेलन” में उमड़े भारी जनसमूह को संबोधित करते हुए व्यक्त किए। मुख्यमंत्री सैनी ने गुजरात के राज्यपाल एवं गुरुकुल कुरुक्षेत्र के संरक्षक आचार्य देवव्रत जी की कार्यशैली की सराहना करते हुए कहा कि आचार्य जी ने जीर्ण-क्षीण स्थिति में इस गुरुकुल की बागडोर संभाली और निस्वार्थ भाव से दृढ़ इच्छाशक्ति के साथ कार्य करते हुए इसे सफलता के शिखर पर पहुंचाया। उन्हीं की मेहनत का परिणाम है कि गुरुकुल कुरुक्षेत्र आज देश का एकमात्र ऐसा संस्थान बन गया है, जहां से हर वर्ष बड़ी संख्या में छात्र एनडीए, नीट, आईआईटी, एनआईटी के लिए चयनित होते हैं। महर्षि दयानन्द जी की 200वीं जयंती पर सभी आर्यजनों को बधाई देते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि स्वामी जी ने हमेशा समाज उत्थान का कार्य किया। उन्होंने समाज में फैले पाखंड, अंधविश्वास, जात-पात, सती प्रथा जैसी कुरीतियों को मिटाकर नारी शिक्षा, विधवा विवाह, आपसी भाईचारा, राष्ट्र प्रेम, गो-रक्षा के प्रति नई जागरूकता उत्पन्न की। मुख्यमंत्री सैनी ने महर्षि दयानन्द के समाज निर्माण के आदर्शों को अपने सहयोग का वचन दिया। महासम्मेलन को संबोधित करते हुए राज्यपाल आचार्य देवव्रत जी ने कहा कि महर्षि दयानन्द सरस्वती पहले ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने अंग्रेजी शासन में “स्वराज” का नारा बुलंद किया। उनकी शिक्षाओं से प्रेरणा लेकर भगत सिंह, सरदार वल्लभ भाई पटेल, मदनलाल ढींगरा, स्वामी श्रद्धानंद जैसे वीर सपूतों ने देश की आजादी के लिए अपना सर्वस्व बलिदान कर दिया। अंग्रेजों द्वारा प्राचीन शिक्षा पद्धति को समाप्त करने के प्रयासों के बावजूद, स्वामी जी के अनुयायियों ने गुरुकुल कुरुक्षेत्र, गुरुकुल इन्द्रप्रस्थ, गुरुकुल सूपा जैसे संस्थानों की स्थापना कर गुरुकुलीय शिक्षा पद्धति को पुनर्जीवित किया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नीतियों का उल्लेख करते हुए आचार्य देवव्रत जी ने कहा कि प्रधानमंत्री देश की उन्नति हेतु पूर्णतः समर्पित हैं और भारतीय संस्कृति, युवा पीढ़ी में संस्कार व नैतिक मूल्यों की शिक्षा के साथ एक विकसित भारत का निर्माण करना चाहते हैं। इसी संकल्प के तहत वे देशी गाय पर आधारित प्राकृतिक कृषि को बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्ध हैं। उन्होंने चेताया कि रासायनिक खेती के कारण भूमि बंजर हो रही है, जल दूषित हो रहा है और मित्र जीव विलुप्त हो रहे हैं। यदि किसान रासायनिक खेती नहीं छोड़ते, तो आने वाली पीढ़ियों के लिए कुछ नहीं बचेगा। आज कैंसर, हृदय रोग, उच्च रक्तचाप, मधुमेह जैसी गंभीर बीमारियां घर-घर में हैं। वैज्ञानिकों ने यहां तक पाया है कि मां के दूध में भी यूरिया की मात्रा मौजूद है। इस समस्या का एकमात्र उपाय प्राकृतिक खेती है। आचार्य देवव्रत ने बताया कि गुजरात में 10 लाख से अधिक किसान प्राकृतिक खेती अपनाकर सुखमय जीवन व्यतीत कर रहे हैं, जो कम खर्च और अधिक उत्पादन देती है। उन्होंने आर्य महासम्मेलन में आए आर्यजनों से भी प्राकृतिक खेती अपनाने का आह्वान किया। अंत में मुख्यमंत्री ने आचार्य के साथ गुरुकुल की एनडीए विंग का अवलोकन किया। इस अवसर पर परोपकारी सभा अजमेर के महामंत्री कन्हैयालाल आर्य, आर्य प्रतिनिधि सभा के प्रधान देशबंधु आर्य, महामंत्री उमेद शर्मा, गुरुकुल के प्रधान राजकुमार गर्ग, निदेशक ब्रिगेडियर डॉ. प्रवीण कुमार, प्राचार्य सूबे प्रताप, उत्तर प्रदेश आर्य प्रतिनिधि सभा के प्रधान देवेंद्रपाल वर्मा, भाजपा नेता एवं पूर्व मंत्री सुभाष सुधा, डीडी शर्मा, सुभाष कलसाना, सुशील राणा सहित विभिन्न स्थानों से आए आर्य विद्वान उपस्थित रहे। मंच संचालन वैदिक विद्वान डॉ. राजेंद्र विद्यालंकार द्वारा किया गया।