नई दिल्ली
राज्यों की राजकोषीय समझदारी की राह पर यात्रा जारी है। आधिकारिक सूत्रों से मिले आंकड़ों के मुताबिक अब तक उनकी कुल उधारी 5 लाख करोड़ रुपये तक पहुंची है, जो दिसंबर 2024 तक अनुमानित 8.38 लाख करोड़ रुपये उधारी के अनुमान का महज 60 फीसदी है। सरकारी अधिकारियों ने कहा कि राज्यों द्वारा अनुमानित उधारी से कम उधार लेना उनके विवेकपूर्ण वित्तीय प्रबंधन का संकेत देता है। राज्य हर तिमाही अपनी उधारी योजना की घोषणा करते हैं।राज्यों को अपने जीएसडीपी का 3 फीसदी तक राजकोषीय घाटा रखने की अनुमति है और बिजली क्षेत्र के सुधारों को लागू करने की स्थिति में उन्हें 0.5 फीसदी की अतिरिक्त राहत दी जाती है। बहरहाल विशेषज्ञों का कहना है कि राज्यों ने अपनी जरूरत के मुताबिक उधारी जारी रखी है और कम उधारी की वजह ज्यादा पूंजीगत व्यय वाली परियोजनाओं की कमी हो सकती है। अर्थशास्त्रियों ने कहा कि झारखंड, महाराष्ट्र सहित कुछ राज्यों में होने जा रहे चुनाव और हरियाणा में हाल में हुए चुनाव के कारण भी पूंजी केंद्रित परियोजनाओं में निवेश ठहरा है।बैंक ऑफ बड़ौदा में मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबनवीस ने कहा, ‘कई राज्यों में चुनाव की वजह से कुल मिलाकर राज्यों का व्यय कम रहा है। अगर पूंजीगत व्यय वाली परियोजनाएं नहीं लाई जाती हैं तो राज्य अपनी नकदी के माध्यम से राजस्व व्यय की भरपाई कर सकते हैं। गुजरात और महाराष्ट्र जैसे कुछ राज्य भी हैं, जो राजकोषीय विवेक के कारण अधिक उधार लेने का अनुमान लगाते हैं।’राज्यों में पूंजीगत व्यय को बढ़ावा देने और उनके विकास एवं जनकल्याणकारी व्यय के वित्तपोषण के लिए केंद्र सरकार ने अब तक कुल कर विभाजन का 65 फीसदी राज्यों को जारी कर दिया है। इनमें 2 अग्रिम किस्तें भी शामिल हैं।मंगलवार को जारी मोतीलाल ओसवाल की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि 18 राज्यों के अनंतिम आंकड़ों के मुताबिक वित्त वर्ष 2025 की पहली छमाही में पिछले साल की समान अवधि की तुलना में पूंजीगत व्यय 11.5 फीसदी कम हुआ है। ये राज्य वित्त वर्ष 2025 की पहली छमाही में बजट अनुमान के 26.7 फीसदी तक पहुंचे हैं, जबकि पिछले साल की समान अवधि में 31.8 फीसदी खर्च कर चुके थे।