देहरादून । लद्दाख में चीन के साथ तनाव भले ही घट रहा हो, लेकिन भारत भविष्य की तैयारियों पर काम तेज कर चुका है। इसी क्रम में जल्द ही आपको उत्तराखंड में चीन सीमा तक भारतीय रेल दौड़ती नजर आएगी। इसे चंपावत जिले के टनकपुर से बागेश्वर के बीच बनाया जाना है।इस 169 किमी लंबी रेल लाइन के लिए सर्वे का काम लगभग पूरा हो चुका है। यह रेल लाइन उच्च हिमालय के पहाड़ों के बीच से गुजरते हुए चीन सीमा से लगते पिथौरागढ़ और बागेश्वर तक जाएगी।रेलवे के जनसंपर्क अधिकारी राजेंद्र सिंह के मुताबिक नई रेल लाइन रणनीतिक रूप से बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि पिथौरागढ़ जिला नेपाल व चीन के साथ अंतरराष्ट्रीय सीमा से जुड़ा है।टनकपुर भारत-नेपाल सीमा से लगता इलाका है और यह उत्तराखंड में नेपाल सीमा पर भारत का आखिरी रेलवे स्टेशन भी है। इस रूट पर सर्वे के साथ पिलर लगाने का काम शुरू हो चुका है।पिथौरागढ़ जिले के उच्च हिमालय वाले इलाकों में चीन तक पहुंचने के लिए 5 दर्रे हैं। इनमें लम्पिया धुरा, लेविधुरा, लिपुलेख, ऊंटा जयंती व दारमा दर्रे हैं। ये सभी करीब 5 हजार मीटर से अधिक ऊंचाई पर स्थित हैं। इस कारण सेना के लिए इन इलाकों तक तेजी से सप्लाई पहुंचाना काफी चुनौतीपूर्ण होता है।यदि टनकपुर से पिथौरागढ़ होते हुए चीन बॉर्डर तक जाएं तो सड़क रास्ते से 16 घंटे से ज्यादा समय लग जाता है। नई रेल लाइन बिछने के बाद यह काम दो से तीन घंटे में हो जाएगा। नोएडा की स्काईलार्क इंजीनियरिंग डिजाइनिंग प्राइवेट लिमिटेड की टीम सर्वे कर चुकी है।उत्तराखंड के इस इलाके का सामरिक व व्यापारिक महत्व सदियों से रहा है, क्योंकि इन सीमांत जिलों के लोग तिब्बत के साथ सीमा व्यापार करते रहे हैं। इसलिए अंग्रेजों ने भी 1882 में पहली बार टनकपुर-बागेश्वर रेल लाइन का सर्वे किया था। उनके सर्वे प्लान के रूट मैप पर ही नए सिरे से सर्वे किया गया।यहां दिसंबर से पटरियां बिछेंगी। 125 किमी रूट पर 85 किमी में टनल खुदाई हो चुकी है। रेल विकास निगम के प्रबंधक अजीत सिंह यादव के मुताबिक 16 किमी टनल और खुदना है। यह काम मार्च 2025 तक पूरा होना है। यह रूट ब्लास्ट लेस तकनीक पर बना है। इस पर हाई स्पीड बुलेट ट्रेन भी दौड़ेगी। इस ट्रैक पर 13 स्टेशन और 16 सुरंगें होंगी।