हाईकोर्ट की आलोचना के खिलाफ सत्र न्यायाधीश की याचिका स्वीकार
नई दिल्ली (वी.एन.झा)। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि न्यायाधीश भी मनुष्य हैं और उनसे भी गलतियां हो सकती हैं। इसलिए न्यायाधीशों की व्यक्तिगत आलोचना या निर्णयों में न्यायाधीशों के आचरण पर टिप्पणी करने से बचना चाहिए। जस्टिस अभय एस ओका, जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्ला और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश सोनू अग्निहोत्री की अपील स्वीकार करते हुए यह टिप्पणी की। सत्र न्यायाधीश ने अग्रिम जमानत याचिका पर विचार करते समय जांच अधिकारी और एसएचओ के खिलाफ कार्रवाई वाले उनके आदेश के लिए हाईकोर्ट ने उनके खिलाफ प्रतिकूल टिप्पणी की थी। पीठ ने कहा, किसी मामले में, कई ठोस फैसले लिखने के बाद, एक न्यायाधीश काम के दबाव या अन्य कारणों से एक फैसले में गलती कर सकता है। हाईकोर्ट हमेशा गलती को सुधार सकता है। हालांकि ऐसा करते समय, यदि न्यायिक अधिकारी के खिलाफ व्यक्तिगत रूप से आलोचना की जाती है, तो इससे न्यायिक अधिकारी को शर्मिंदगी के अलावा पूर्वाग्रह भी होता है। हमें याद रखना चाहिए कि जब हम सांविधानिक अदालतों में बैठते हैं तो हमसे भी गलतियां होने की आशंका होती है। शीर्ष अदालत ने कहा कि हाईकोर्ट ने पाया कि अपीलकर्ता ने एक अपरिहार्य खोज शुरू की, जिसे टाला जाना चाहिए था। इसके अलावा पीठ ने कहा कि पैराग्राफ 14 में अपीलकर्ता को सतर्क रहने और भविष्य में सावधानी बरतने की सलाह दी गई है। पीठ ने कहा, हाईकोर्ट न्यायिक पक्ष के फैसले का इस्तेमाल व्यक्तिगत न्यायिक अधिकारियों को सलाह देने के लिए नहीं कर सकता था। यह केवल उचित मामले में प्रशासनिक पक्ष पर ही किया जा सकता है। अपीलकर्ता के दृष्टिकोण को न्यायिक दुस्साहस के रूप में वर्णित करना भी अनुचित था।पीठ ने कहा कि गलतियां करना मानवीय स्वभाव है। हमारे देश की लगभग सभी अदालतें अत्यधिक बोझ से दबी हुई हैं। न्यायाधीश तनाव में काम करते हैं और हर न्यायाधीश से, चाहे वह किसी भी पद या स्थिति का क्यों न हो, गलतियां करने की संभावना होती है। पीठ ने कहा कि वर्ष 2002 में, ऑल इंडिया जजेज एसोसिएशन (3) और अन्य बनाम भारत संघ और अन्य के मामले में, इस अदालत ने एक आदेश पारित किया था जिसमें निर्देश दिया गया था कि पांच साल के भीतर, हमारी ट्रायल न्यायपालिका में न्यायाधीश-जनसंख्या अनुपात को बढ़ाकर 50 प्रति 10 लाख करने का प्रयास किया जाना चाहिए। लेकिन 2024 तक 10 लाख की जनसंख्या पर न्यायाधीशों की संख्या 25 भी नहीं है। वहीं, जनसंख्या और मुकदमेबाजी में काफी वृद्धि हुई है। पीठ ने कहा कि हाईकोर्ट अपनी शक्तियों का प्रयोग करते हुए त्रुटिपूर्ण आदेशों को निरस्त कर सकते हैं तथा अनावश्यक और अनुचित टिप्पणियों को हटा सकते हैं। पीठ ने कहा, हमें याद रखना चाहिए कि जब हम सांविधानिक अदालतों में बैठते हैं तो हमसे भी गलतियां होने की आशंका रहती है। किसी भी अदालत को अधीनस्थ अदालत नहीं कहा जा सकता।