नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय के उस फैसले पर सख्त टिप्पणी की है, जिसमें एक महिला जज को उनके प्रदर्शन के आधार पर बर्खास्त कर दिया गया था, जबकि उनके गर्भपात के कारण उनके मानसिक और शारीरिक संकट को नजरअंदाज किया गया था। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा- काश पुरुषों को मासिक धर्म होता। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस बीवी नागरत्ना और एन कोटिस्वर सिंह की बेंच ने उच्च न्यायालय से यह स्पष्टता मांगी कि सिविल जजों की बर्खास्तगी के लिए क्या मानक हैं। सुनवाई के दौरान जस्टिस नागरत्ना ने कहा, ‘मैं उम्मीद करती हूं कि ऐसे मानक पुरुष जजों पर भी लागू होंगे। मुझे इसमें कोई हिचक नहीं है। महिला गर्भवती हुई थी और उसका गर्भपात हो गया। एक महिला जो गर्भपात से गुजरी है, उसका मानसिक और शारीरिक दर्द क्या है? काश पुरुषों को मासिक धर्म होता, तब उन्हें पता चलता कि यह क्या होता है।11 नवंबर, 2023 को सुप्रीम कोर्ट ने स्वत: संज्ञान लिया था जब राज्य सरकार ने छह महिला सिविल जजों को कथित तौर पर असंतोषजनक प्रदर्शन के आधार पर बर्खास्त कर दिया था। हालांकि, मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय की एक पूर्ण अदालत ने 1 अगस्त को अपनी पिछली बैठक के फैसले पर पुनर्विचार किया और चार अधिकारियों को पुनर्नियुक्त करने का फैसला लिया, जिनमें ज्योति वर्कडे, सोनाक्षी जोशी, प्रिय शर्मा और रचना अतुलकर जोशी शामिल थीं। बाकी दो महिला जजों, अदिति कुमार शर्मा और सरिता चौधरी को इसमें शामिल नहीं किया गया।सुप्रीम कोर्ट इन जजों के मामलों पर विचार कर रहा था, जो मध्यप्रदेश न्यायिक सेवा में 2018 और 2017 में भर्ती हुए थे। उच्च न्यायालय की तरफ से दी गई एक रिपोर्ट के अनुसार, अदिति शर्मा का प्रदर्शन 2019-20 में ‘बहुत अच्छा’ और ‘अच्छा’ था, लेकिन इसके बाद वह ‘औसत’ और ‘खराब’ हो गया। 2022 में, उनके पास लगभग 1,500 लंबित मामले थे और निपटान दर 200 से कम थी। अदिति शर्मा ने उच्च न्यायालय को सूचित किया था कि 2021 में उनका गर्भपात हुआ, इसके बाद उनके भाई को कैंसर की बीमारी का पता चला। सुप्रीम कोर्ट ने यह नोट किया कि कोविड महामारी के कारण जजों के कार्य का मात्रात्मक मूल्यांकन नहीं किया जा सका था। जून 2023 में राज्य विधि विभाग की तरफ से इन जजों की बर्खास्तगी का आदेश पारित किया गया था, जब एक प्रशासनिक समिति और एक पूर्ण न्यायालय ने उनकी प्रोबेशन अवधि के दौरान प्रदर्शन को ‘असंतोषजनक’ पाया।एक जज की तरफ से दाखिल किए गए आवेदन में यह दावा किया गया था कि उनके चार साल के बेदाग सेवा रिकॉर्ड और किसी भी प्रतिकूल टिप्पणी के बावजूद, उन्हें बिना कानूनी प्रक्रिया का पालन किए बर्खास्त कर दिया गया। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि उनके मातृत्व और बाल देखभाल अवकाश को कार्य मूल्यांकन में शामिल करना उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है। उनके आवेदन में कहा गया कि यह स्थापित कानून है कि मातृत्व और बाल देखभाल अवकाश महिला और शिशु का मौलिक अधिकार है, और इसलिए इस अवकाश के आधार पर प्रदर्शन का मूल्यांकन करना उनके मौलिक अधिकारों का गंभीर उल्लंघन है।