12 जनवरी को मनाई जाएगी विवेकानंद जयंती
प्रभास पाटण
विश्व मुगावतार स्वामी विवेकानंदजी 12 जनवरी को जन्म जयंती मनाई जाती है। स्वामीजी 1891 में संभवत: दिसम्बर माह में सौराष्ट्र के सागर तट पर स्थित यहां के सोमनाथ मंदिर पहुंचे थे। उस समय वहां कोई भव्य देवालय न था। मात्र खंडहर मंदिर भग्नावेश में था। उन्होंने विध्वंस एवं निर्माण की इस ऐतिहासिक भूमि को नजरों से निहारी थी तथा उस दिन मध्यान्हï में सोमनाथ समुद्र तट की ओर मुख रख खंडहर बीच के मंदिर प्रांगण की एक शिला पर बैठ-पलथी वाला प्राणायाम किया तथा ध्यान समाधिस्थ हो गए थे एवं एक घन्टे तक मध्यान्ह समाधि में रहे थे तथा भारत का फिर वापस स्वर्णयुग आए ऐसी चिंता एवं चिंतन उन्होंने किया था। सोमनाथ की उन्होंने प्राप्त की अनुभूति का इतना गहरा असर पड़ा था कि 1893 में विदेश से वापस लौट उन्होंने मद्रास में अपने एक भाषण में कहा था कि दक्षिण भारत के कई प्राचीन मंदिर तथा गुजरात के सोमनाथ जैसे मंदिर आपको ज्ञान के अनेक ग्रन्थ सिखाएंगे। अनेक ग्रन्थों की अपेक्षा प्रजा के इतिहास में आपको एक और दृष्टि देंगे। निरंतर खंडहर से वापस बनकर स्थापित होते, पुनर्जीवन पाए एवं पहले की भांति सदा मजबूत यह मंदिर पर नया भव्य मंदिर खड़ा है। जो सोमनाथ में ध्यानस्थ बन पुन: निर्माण का जो स्वप्न संजोया था तथा जो स्वर्णमय भारत बने ऐसी आर्ष दृष्टि साकार हुई ऐसी अनुभूति विवेकानंद ने सोमनाथ में अनुभव की थी। उस समय में सोमनाथ में स्वामीजी ने अहिल्याभाई सोमनाथ मंदिर, सूरज मंदिर तथा जहां भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी मानवलीला का संवरण किया है उस स्थान को भी निहारा था। प्रभास के त्रिवेणी संगम में पवित्र स्नान भी किया था एवं 1891-92 में नवम्बर या दिसम्बर में यहां आए थे, उनके साथ कच्छ के महाराजा भी थे। ऐसा माना जाता है कि सोमनाथ के उस काल के मंदिर के समक्ष स्वामी विवेकानंदजी द्वारा किए गए ध्यान से हताश भारत में जनचेतना जगाने का वह बाद का उनका प्रवास रहा तथा इस प्रकार सोमनाथ स्वामीजी के जीवन कार्य का निर्णायक केन्द्र रहा था।