नई दिल्ली । अगर राज्यपाल आर.एन. रवि विधानसभा से पारित विधेयकों को दूसरी बार मंजूरी नहीं देते हैं, तो यह देश की लोकतांत्रिक प्रणाली की विफलता की वजह बनेगा। तमिलनाडु सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में यह बात कही। जस्टिस जे.बी. पारदीवाला और आर. महादेवन की बेंच तमिलनाडु सरकार की ओर से दायर दो याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी, जो विधानसभा में पारित विधेयकों को मंजूरी देने में देरी को लेकर राज्यपाल के साथ चल रहे टकराव को लेकर दायर की गई थीं। शीर्ष कोर्ट ने कहा कि दोनों पक्षों के बीच विवाद से जनता और राज्य को नुकसान हो रहा है। मंगलवार को तमिलनाडु सरकार की ओर से वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी पेश हुए। उन्होंने कोर्ट से कहा कि कानून के अमुताबिक जब राज्य की विधानसभा कोई विधेयक पारित करती है, तो राज्यपाल उसे दोबारा विचार करने के लिए भेज सकते हैं। लेकिन अगर वही विधेयक फिर से विधानसभा से पारित होकर राज्यपाल को भेजा जाता है, तो राज्यपाल के पास मंजूरी देने के अलावा कोई विकल्प नहीं होता। यह हमारे सांविधानिक ढांचे में तय प्रक्रिया है।
अगर वे फिर भी मंजूरी नहीं देते हैं या असहमति जताते हैं, तो यह हमारी लोकतांत्रिक प्रक्रिया की विफलता होगी।उन्होंने यह भी कहा कि संविधान में स्पष्ट प्रावधान हैं कि राज्य पाल दूसरी बार विधेयक पर मंजूरी देने के लिए बाध्य होते हैं। वहीं, तमिलनाडु सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ वकील अभिषेक सिंघवी ने भी यही दलील दी कि विधेयकों को राष्ट्रपति को भेजने का विकल्प पहली बार में ही किया जाना था और बाद में ऐसा नहीं किया जा सकता। उन्होंने कहा कि विधेयक के दोबारा पारित होने के बाद राज्यपाल के पास मंजूरी देने के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं होता और वह इसे राष्ट्रपति के पास नहीं भेज सकते। सुप्रीम कोर्ट ने निर्णय नहीं दिया। हालांकि, मामलो को अगली सुनवाई छह फरवरी को तय की है, जिसमें पहले तमिलनाडु सरकार के वकील की दलीलें सुनी जाएंगी और फिर राज्यपाल के वकील, अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी की दलीलें सुनी जाएंगी। तमिलनाडु सरकार ने 2023 में सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था और आरोप लगाया था कि राज्यपाल की ओर से विधेयकों को मंजूरी देने में देरी की जा रही है।