पतंजलि रिसर्च अनुसंधान में ‘औषधीय पौधों की खेती में कृषि-उद्यमिता के विकास के लिए क्षेत्रीय प्रशिक्षण’ पर दो दिवसीय किसान प्रशिक्षण का आयोजन
सार्वभौमिक और छिपी हुई संपदा को पुनर्जीवित करने की आवश्यकता : डॉ. अरुण चंदन
संभावित औषधीय पौधों की कृषि-प्रोद्यौगिकी विकसित करने की आवश्यकता : डॉ. कुणाल भट्टाचार्य
हरिद्वार। भारत सरकार के आयुष मंत्रालय के तहत राष्ट्रीय औषधीय पादप बोर्ड (एनएमपीबी) योजना द्वारा प्रायोजित विषय ‘औषधीय पौधों की खेती में कृषि उद्यमिता के विकास के लिए क्षेत्रीय प्रशिक्षणÓ का दो दिवसीय आयोजन पतंजलि रिसर्च फाउंडेशन और पतंजलि विश्वविद्यालय के सहयोग से पतंजलि रिसर्च फाउंडेशन के सभागार में किया गया। इस कार्यक्रम में औषधीय पादपों का संरक्षण, उनकी प्राकृतिक प्रजातियों का वृक्षारोपण और संरक्षण पर जोर दिया गया, साथ ही हर्बल उद्यानों के विकास के माध्यम से संरक्षण को बढ़ावा दिया गया। कार्यक्रम का शुभारंभ दीप प्रज्वलन से हुआ। स्वामी रामदेव जी एवं बालकृष्ण जी ने अतिथियों का स्वागत शाल और माला पहनाकर किया। चार सत्रों में विभाजित इस सम्मेलन में राष्ट्रीय और प्रादेशिक स्तर के किसानों तथा कृषि विशेषज्ञों ने भाग लिया, जिन्होंने उत्तराखण्ड की प्राचीन संजीवनी को वैश्विक मंच पर प्रस्तुत करने में सफलता प्राप्त की। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि और वक्ता के रूप में डॉ. कुणाल भट्टाचार्य, डॉ. अरुण चंदन, मीनाक्षी, श्वेता, डॉ. जितेंद्र सिंह बुटोला, प्रो. (डॉ.) प्रदीप कुमार, पवन कुमार, कवीन्द्र सिंह, ज्ञान प्रकाश, अमित काले, भानुप्रताप सिंह और प्रो. मयंक कुमार अग्रवाल ने सहभागिता की। कृषि संबंधित विषयों पर उपस्थित किसानों का मार्गदर्शन किया गया। कार्यक्रम में योगऋषि स्वामी रामदेव ने कहा कि कृषि उद्यमिता खेती का एक ऐसा दृष्टिकोण है, जो सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय प्रक्रियाओं के आपसी संबंधों को महत्त्वपूर्ण मानता है। आधुनिक कृषि उद्यम घरेलू और अंतरराष्ट्रीय बाज़ारों के लिए उत्पादन करते हैं, जबकि छोटे और मध्यम आकार के खेत स्थानीय और घरेलू बाज़ारों के लिए उत्पादन करते हैं, और छोटे किसान अपने व्यक्तिगत उपभोग के लिए उत्पादन करते हैं। औषधीय पौधों की खेती और कृषि उद्यमिता को बढ़ावा देने में अभूतपूर्व प्रगति देखने को मिली है। आज, पतंजलि वनस्पति, स्वास्थ्य और आध्यात्मिकता का पर्याय बन चुका है। पतंजलि रिसर्च अनुसंधान की प्रमुख डॉ. वेदप्रिया आर्या ने कार्यक्रम की रूपरेखा और उद्देश्य स्पष्ट करते हुए मिट्टी में पोषक तत्वों की कमी को दूर करना और मिट्टी परीक्षण को किसानों के लिए सुलभ बनाने को आवश्यक कहा। पतंजलि जैविक अनुसंधान संस्थान ने एक सस्ती मृदा परीक्षण किट विकसित की है जो कृषि मापदंडों जैसे पीएच, नाइट्रोजन, कार्बनिक कार्बन, फास्फोरस और पोटेशियम का निर्धारण करती है। यह किट केवल 20 मिनट में मिट्टी की उर्वरता और पोषक स्थिति का परिणाम देती है, जिससे किसान अपनी भूमि के अनुसार उपयुक्त फसल का चयन कर सकते हैं। धरती के डॉक्टर किट का डेमो भी प्रस्तुत किया गया, जिससे किसान अपनी मिट्टी की जांच स्वयं कर सकते हैं। पतंजलि रिसर्च फाउंडेशन, हरिद्वार के औषधि खोज एवं विकास प्रभाग के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. कुणाल भट्टाचार्य ने अनुसंधान और विकास गतिविधियों का अवलोकन करते हुए कृषि उद्यमिता को पतंजलि से जोड़ते हुए इसके योगदान की विस्तार से व्याख्या की। उन्होंने मानव और पशुओं के लिए सार्वभौमिक संपदा की स्थिरता सुनिश्चित करने के उद्देश्य से औषधीय पौधों के स्तरीकरण पर जोर दिया। अनुसंधान में औषधीय पौधों के पांच प्रमुख घटकों— मेडिकोइथो बोटानिकल सर्वे, प्रोपेगेशन तकनीक, मेडिसिन प्लांट की डेमोंस्ट्रेशन कल्टीवेशन, बोटानिकल, फर्माकॉंगनोस्टिकल स्टैंडर्डलाइजेशन और माइक्रोबायोलॉजी की चर्चा की। मुख्य वक्ता, राष्ट्रीय औषधीय पौधे बोर्ड, आयुष मंत्रालय के क्षेत्रीय निदेशक डॉ. अरुण चंदन ने औषधीय जड़ी-बूटियों के प्राचीन काल से लेकर आज तक पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियों में उनके उपयोग के बारे में जानकारी दी, जिससे ये कवक, कीड़ों और बीमारियों से सुरक्षित रहती हैं। औषधीय पौधों की खेती के संरक्षण पर जोर देते हुए उन्होंने एलोवेरा, कीकर के गोंद और कुटकी जड़ी-बूटियों पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि कीकर लीवर को स्वस्थ बनाए रखता है और प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है, साथ ही यह मधुमेह, गठिया, अस्थमा, चर्म रोग और बुखार जैसी समस्याओं में भी लाभकारी है। एचएनबी गढ़वाल विश्वविद्यालय, श्रीनगर के वानिकी और प्राकृतिक संसाधन विभाग के डॉ. जितेंद्र सिंह बुटोला ने कहा कि औषधीय पौधों को रासायनिक खाद और कीटनाशकों की कम आवश्यकता होती है, जिससे इनकी लागत कम रहती है। एक बार फसल लगाने के बाद, अगले तीन वर्षों तक उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है। इसके अलावा, इन पौधों से प्राप्त सुगंधित तेलों का उपयोग आरोमा थेरेपी में किया जाता है, जो अवसाद, अनिद्रा, चिंता और सिरदर्द जैसी समस्याओं के उपचार में प्रभावी होते हैं। केंद्रीय विश्वविद्यालय, हिमाचल प्रदेश के जीव विज्ञान संकाय के वनस्पति विज्ञान विभाग के प्रो. (डॉ.) प्रदीप कुमार ने फसल से पहले के प्रबंधन की कृषि तकनीकों के बारे में जानकारी दी। उन्होंने सिंचाई, मिट्टी की तैयारी, बुआई और कीटों से बचाव को आवश्यक बताते हुए कहा कि इनका मुख्य उद्देश्य संसाधनों का प्रभावी उपयोग करते हुए पर्यावरणीय दुष्प्रभावों को कम करना और उत्पादकता बढ़ाना है। इसके लिए उन्नत कृषि पद्धतियों और मृदा विश्लेषण की जानकारी बेहद महत्त्वपूर्ण है। पतंजलि ऑर्गेनिक रिसर्च इंस्टीट्यूट के पवन कुमार ने जैविक और प्राकृतिक कृषि पद्धतियों के संदर्भ में कहा कि कृषि विपणन उत्पादकता को बढ़ाने, खपत बढ़ाने और आर्थिक विकास को गति देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। आईआईएलएम यूनिवर्सिटी के इनक्यूबेशन मैनेजर अमित काले ने कृषि नवाचार और स्टार्टअप मॉडल के संदर्भ में कृषि मंत्रालय की वित्तीय सहायता से इनक्यूबेशन पारिस्थितिकी तंत्र को बढ़ावा देने, कृषि-उद्यमिता और कृषि व्यवसाय को प्रोत्साहित करने हेतु राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के तहत शुरू की गई नई योजनाओं पर विचार साझा किए। कार्यक्रम के समापन पर पतंजलि विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर, प्रो. मयंक कुमार अग्रवाल ने कार्यक्रम की प्रशंसा करते हुए आगंतुकों को किसान प्रशिक्षण कार्यक्रम में भाग लेकर इसे सफल बनाने और वैश्विक स्तर पर भारत को विश्वगुरु बनाने की बात कही। राष्ट्रीय स्तर पर 100 से अधिक किसानों ने बेहतर विकास और पैदावार के लिए हरित क्रांति, अन्नदाता ऐप, धरती के डॉक्टर और विशेष पोषण संबंधी समस्याओं के समाधान प्राप्त किए। कार्यक्रम का संचालन डॉ. दीपिका श्रीवास्तव ने किया। धन्यवाद ज्ञापित करते हुए प्रो. मयंक अग्रवाल ने इस प्रकार के कार्यक्रमों को जीवन के लिए महत्त्वपूर्ण बताया। इस अवसर पर पतंजलि परिवार के सभी सदस्य उपस्थित थे।