नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा कि जब राज्यों से विकास का डेटा पूछा जाता है, तो वे प्रति व्यक्ति आय में तेज बढ़ोतरी दिखाते हैं, लेकिन जब सब्सिडी की बात आती है, तो वे 75 फीसदी आबादी को गरीबी रेखा के नीचे (बीपीएल) बताते हैं। मामले की सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने कहा कि सब्सिडी का असली हकदारों तक पहुंचना जरूरी है। न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने आगे कहा, हमारी चिंता यह है कि क्या गरीबों के लिए बनी योजनाओं का लाभ उन्हीं तक पहुंच रहा है या नहीं? राशन कार्ड अब लोकप्रियता कार्ड बन गया है। उन्होंने आगे कहा, ‘राज्य विकास के लिए अपनी प्रति व्यक्ति आय बढ़ी हुई बताते हैं, लेकिन जब गरीबी की बात आती है, तो 75% आबादी को गरीब बताने लगते हैं। यह विरोधाभास कैसे संभव है?’ यह मामला सुप्रीम कोर्ट ने कोरोना महामारी के दौरान प्रवासी मजदूरों की स्थिति सुधारने के लिए खुद ही शुरू किया था।मामले की सुनवाई के दौरान अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने कहा कि यह असमानता अमीर और गरीब के बीच बढ़ते अंतर के कारण है। उन्होंने आगे कहा, ‘कुछ लोग बहुत अमीर हो रहे हैं, जबकि बाकियों की हालत जस की तस बनी हुई है। प्रति व्यक्ति आय का आंकड़ा पूरे राज्य की कुल आय का औसत होता है, इसलिए असल हालात नहीं दिखते’। उन्होंने यह भी बताया कि ई-श्रम पोर्टल में दर्ज आठ करोड़ प्रवासी मजदूरों को मुफ्त राशन मिलना चाहिए।वहीं केंद्र सरकार की ओर से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने बताया कि सरकार 81.35 करोड़ लोगों को राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (एनएफएसए) के तहत मुफ्त राशन दे रही है और 11 करोड़ अन्य लोगों को भी इसी तरह की योजना से फायदा हो रहा है।सुप्रीम कोर्ट ने पहले भी चिंता जताई थी कि अगर 81 करोड़ लोग मुफ्त राशन पर निर्भर हैं, तो क्या सिर्फ करदाता ही आत्मनिर्भर बचे हैं? कोर्ट ने केंद्र से यह भी पूछा कि क्या राशन कार्ड वितरण में कोई राजनीतिक दखल तो नहीं हो रहा? मामले में न्यायमूर्ति सूर्य कांत ने कहा, ‘मैं अपनी जड़ों से जुड़ा हूं, मुझे गरीबों की हालत समझ में आती है। आज भी कई परिवार गरीबी से जूझ रहे हैं’।