वॉशिंगटन। अमेरिका की तरफ से लगाए गए 104% टैरिफ के जवाब में चीन ने अमेरिका पर 84% टैरिफ लगा दिया है। ये टैरिफ कल से लागू होगा।इससे पहले चीन ने अमेरिकी सामान पर 34% टैरिफ लगाया था, जिसमें आज 50% का इजाफा किया गया है।चीन के कॉमर्स मंत्रालय ने ये भी कहा है कि उसने 12 अमेरिकी कंपनियों को एक्सपोर्ट कंट्रोल लिस्ट में डाला है। इससे पहले 6 कंपनियों को ‘गैर भरोसेमंद’ की लिस्ट में डाला था।वहीं, अमेरिका का चीन पर लगाया 104% टैरिफ आज से लागू हो गया है। इसका मतलब है कि अब से अमेरिका पहुंचने वाले चीनी सामान दोगुने दाम से भी ज्यादा कीमत पर बिकेंगे।अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने ऐलान किया है कि हम जल्द ही दवाइयों पर भारी टैरिफ लगाने जा रहे हैं। ट्रम्प ने कहा कि उनका मकसद विदेश में दवा बना रही कंपनियों को अमेरिका में वापस लाना और घरेलू दवा इंडस्ट्री को बढ़ावा देना है।ट्रम्प ने कहा कि दूसरे देश दवाओं की कीमतों को कम रखने के लिए बहुत ज्यादा दबाव बनाते हैं। वहां ये कंपनियां सस्ती दवा बेचती हैं, लेकिन अमेरिका में ऐसा नहीं होता है। एक बार जब इन दवा कंपनियों पर टैरिफ लग जाएगा तो ये सारी कंपनियां अमेरिका वापस आ जाएंगी।अगर अमेरिका दवाओं पर भी टैरिफ लगाने का फैसला लेता है तो इसका भारत पर भी असर पड़ेगा। भारतीय फार्मास्यूटिकल कंपनियां हर साल अमेरिका को 40% जेनेरिक दवाएं भेजती हैं। ट्रम्प ने कहा कि दवाएं दूसरे देशों में बनती हैं और इसके लिए आपको ज्यादा कीमत चुकानी पड़ती है। लंदन में जो दवा 88 डॉलर में बिकती है, वही दवा अमेरिका में 1300 डॉलर में बिक रही है। अब यह सब खत्म हो जाएगा।अमेरिकी राष्ट्रपति बोले कि टैरिफ लगाने से फार्मा कंपनियां वापस आएंगी, क्योंकि अमेरिका बहुत बड़ा बाजार है। अगर ऐसा नहीं हुआ तो विदेशी दवा कंपनियों को भारी टैक्स चुकाना पड़ेगा। ट्रम्प दवाओं पर कब से और कितना टैरिफ लगाएंगे, इसकी तारीख उन्होंने नहीं बताई है।अमेरिका दुनिया में सबसे ज्यादा दवाएं खरीदने वाला देश है। यूएस ट्रेड डेटा के मुताबिक भारत, अमेरिका को सबसे ज्यादा दवा बेचने वाले टॉप-5 देशों में शामिल है। Citi का अनुमान है कि अगर टैरिफ का 50% बोझ मरीजों तक पहुंचाया गया, तो फार्मा कंपनियों की कमाई (EBITDA) पर 1% से 7% तक का असर हो सकता है।
ट्रम्प ने संसद में नया बिल पेश किया; 3 लाख भारतीय छात्रों का वर्क वीजा खतरे में
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने ऑप्शनल प्रैक्टिकल ट्रेनिंग (OPT) को खत्म करने के लिए अमेरिकी संसद कांग्रेस में एक नया बिल पेश किया गया है। इससे अमेरिका में पढ़ने वाले 3 लाख भारतीय छात्रों समेत दुनियाभर के छात्रों की चिंता बढ़ गई है।OPT एक ऐसा प्रोग्राम है जो F-1 वीजा पर अध्ययन करने वाले छात्रों को अपनी पढ़ाई के क्षेत्र से संबंधित क्षेत्र में अस्थायी रूप से काम करने की अनुमति देता है। इससे विज्ञान, टेक्नोलॉजी, इंजीनियरिंग और गणित (STEM) के अंतरराष्ट्रीय छात्रों को ग्रेजुएट होने के बाद अमेरिका में 3 साल तक रहने और नौकरी खोजने की परमिशन मिलती है।अगर यह बिल पास हो जाता है तो छात्रों को F-1 वीजा पर काम करने की अनुमति नहीं होगी। इसके अलावा वे F-1 वीजा को वर्क वीजा में परिवर्तन नहीं करा सकेंगे। ऐसे छात्रों को अमेरिका में काम करने के लिए H-1B वर्क वीजा लेना अनिवार्य होगा। यह स्थिति उन छात्रों के लिए चिंताजनक है, जो H-1B वर्क वीजा के लिए आवेदन कर रहे हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक 2023-24 शैक्षणिक वर्ष में अमेरिका में 3 लाख से ज्यादा भारतीय छात्र थे, जिनमें से लगभग 33% OPT के लिए पात्र थे।