जंगल काटकर महानगर बसा रहे हो,
किसी का आशियाना उजाड़ रहे हो,
फिर सुख सुविधा के साधन बना गर्व करते हो।
ऐसे तुम पर्यावरण संरक्षण कर रहे हो?
जिसके अनुपम सौंदर्य से मोहित होते हो,
जिसकी ऊंचाइयों को छूने का ख़्वाब देखते हो,
फिर पहाड़ को तोड़कर सड़के बना रहे हो
ऐसे तुम पर्यावरण संरक्षण कर रहे हो?
जिसे तुम देवी के समकक्ष मानते हो,
पवित्रता की गाथा जिसकी गाते हो,
फिर उसी मां समान नदी को दूषित कर रहे हो।
ऐसे तुम पर्यावरण संरक्षण कर रहे हो?
योग से तन मन को स्वस्थ करने में लगे हो,
जिसके अधीन तुम जीवन ज्ञापित कर रहे हो,
उसी प्राणवायु को दूषित करने में हिचकिचा नहीं रहे हो।
ऐसे तुम पर्यावरण संरक्षण कर रहे हो?
‘जल ही जीवन है’ जानते हो,
‘स्वच्छता ही प्रभुता है’ मानते हो
पर्यावरण दिवस भी उत्साहपूर्वक मनाते हो।
फिर क्यों न रहो प्रकृति के प्रति शत प्रतिशत समर्पित?
ऐसे ही क्यों न करो तुम पर्यावरण संरक्षण।
डॉ. पूनम प्रजापति
असिस्टेंट प्रोफेसर,
आर्ट्स एण्ड कॉमर्स कॉलेज, धोलका, अहमदाबाद