नई दिल्ली
देश में मौसम की मार झेलते किसानों के लिए राहतभरी खबर है। भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) और राष्ट्रीय कमोडिटी एवं डेरिवेटिव्स एक्सचेंज (एनसीडीईएक्स) के बीच हुए ऐतिहासिक समझौते के बाद भारत में पहली बार मौसम आधारित वित्तीय उत्पाद वेदर डेरिवेटिव तैयार किए जाएंगे। इसका मकसद किसानों को बारिश, सूखा, लू और अन्य मौसमी आपदाओं से फसल हानि के लिए मुआवजा देना है। वह भी बिना किसी प्रत्यक्ष नुकसान के प्रमाण के। यह नवाचार न केवल किसानों के लिए बल्कि परिवहन, पर्यटन, लॉजिस्टिक्स जैसे मौसम-निर्भर उद्योगों के लिए भी सुरक्षात्मक कवच का काम करेगा। इस मॉडल का सबसे बड़ा लाभ यह है कि किसानों को सिर्फ मौसम संबंधी मानकों के आधार पर सीधा मुआवजा मिलेगा। इससे बीमा दावों में देरी, निरीक्षण की जटिलता और सरकारी प्रक्रियाओं से जुड़ी बाधाएं भी दूर होंगी। वेदर डेरिवेटिव से तात्पर्य ऐसे वित्तीय अनुबंध से है, जो किसी विशेष मौसमीय घटक जैसे वर्षा, तापमान या सूखा के आधार पर मुआवजा या लाभ प्रदान करते हैं, भले ही फसल को प्रत्यक्ष नुकसान हुआ हो या नहीं। इस संबंध में जारी विज्ञप्ति के अनुसार, मानसून की मार झेल रहे किसानों को राहत मिलेगी। वे बारिश की कमी या अधिकता के आधार पर मुआवजे के पात्र हो सकेंगे। मौसम के आधार पर तैयार होने वाले इन उत्पादों से किसानों की आय स्थिर हो सकती है। फसल बीमा योजनाओं की तुलना में यह अधिक पारदर्शी और त्वरित मदद देगा। यहां उत्पाद का मतलब है, ऐसी सुविधा वाला सिस्टम, जो मौसम खराब होने पर किसान को मुआवजा दिलाए। जैसे बीज, खाद या बीमा की तरह यह भी एक आर्थिक सुरक्षा देने वाली योजना है।आईएमडी के महानिदेशक एम. महापात्रा ने इस समझौते को वैज्ञानिकता से आर्थिक स्थिरता जोड़ने वाला कदम बताया। उन्होंने कहा, अब मौसम विभाग की विशेषज्ञता केवल चेतावनी तक सीमित नहीं रहेगी, बल्कि किसानों की जेब तक भी पहुंचेगी। एनसीडीईएक्स के एमडी अरुण रस्ते ने कहा, यह साझेदारी किसानों के लिए सुरक्षा कवच बनेगी और उन्हें मौसम के खतरों से लड़ने का एक आर्थिक औजार देगी।एनसीडीईएक्स इन वेदर डेरिवेटिव्स के लिए जो मॉडल तैयार करेगा, वे आईएमडी के पुराने और रियल टाइम आंकड़ों पर आधारित होंगे। ये आंकड़े वर्गीकृत, गुणवत्ता-पुष्ट और मौसम की वास्तविकता के करीब होंगे। इससे न केवल जोखिम मूल्यांकन सटीक होगा, बल्कि अनुबंधों की विश्वसनीयता भी बढ़ेगी।भारत जैसे कृषि प्रधान देश में करीब 60 फीसदी खेती मानसून पर निर्भर है। ऐसे में इस तरह के प्रयास न सिर्फ किसानों की आर्थिक स्थिरता में योगदान देंगे बल्कि कृषि बीमा प्रणाली में क्रांतिकारी बदलाव ला सकते हैं। अगर यह मॉडल सफल होता है, तो मौसम आधारित बीमा और कृषि प्रबंधन का भविष्य बदल सकता है। साथ ही, कृषि अर्थव्यवस्था के लिए एक बड़ा मोड़ साबित हो सकता है।

