अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की अहमियत समझें नागरिक, खुद पर लगाएं नियंत्रण
हेट स्पीच के आरोपी की गिरफ्तारी पर रोक लगाई
नई दिल्ली(वी.एन.झा))
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा- केंद्र और राज्य सरकारें हेट स्पीच यानी नफरत फैलाने वाले भाषणों को रोकें। साथ ही इस बात का ध्यान रखें कि नागरिकों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन न हो।जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस केवी विश्वनाथन की बेंच ने कहा- लोग नफरत भरे भाषण को बोलने की आजादी समझ रहे हैं, जो गलत है। लोगों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को लेकर जागरूक करने की जरूरत है, ताकि सरकार को इसे नियंत्रित करने की जरूरत न पड़े।सुप्रीम कोर्ट ने ये बातें कोलकाता के वजाहत खान की याचिका पर सुनवाई के दौरान की। उस पर कई राज्यों में सोशल मीडिया पर नफरत और सांप्रदायिक अशांति भड़काने वाला कंटेंट पोस्ट करने के आरोप में मामले दर्ज किए गए हैं। सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र, राज्यों और वजाहत खान के वकील से सुझाव मांगे कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को नुकसान पहुंचाए बिना हेट स्पीच को कैसे नियंत्रित किया जा सकता है।कोर्ट कहा- लोगों को हेट स्पीच क्यों अटपटे और गलत नहीं लगते हैं। ऐसे कंटेंट पर नियंत्रण होना चाहिए। साथ ही लोगों को भी ऐसे नफरत भरे कंटेंट को शेयर करने और लाइक करने से बचना चाहिए।सुप्रीम कोर्ट ने खान की गिरफ्तारी पर रोक जारी रखी है। साथ ही कहा, बार-बार FIR और जेल भेजने से क्या फायदा? क्या वास्तव में सभी केस एक ही ट्वीट से जुड़े हैं? इस पर खान के वकील ने कहा- मेरे क्लाइंट ने पुराने ट्वीट्स को लेकर माफी मांग ली है। मैं सिर्फ यही चाहता हूं कि कोर्ट यह देखे कि सभी FIR वाकई इन्हीं ट्वीट्स से जुड़ी हैं या नहीं।22 वर्षीय सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर और कानून की छात्रा शर्मिष्ठा पनोली के खिलाफ नफरत फैलाने और धार्मिक भावनाओं को आहत करने का आरोप लगाते हुए शिकायत दर्ज कराई थी। उस पर BNS की धारा 196 (1) (ए) / 299/352/353 (1) (सी) के तहत मामला दर्ज किया गया था।9 जून को कोलकाता पुलिस ने खान को गिरफ्तार किया था। हालांकि 3 जुलाई को उन्हें एक निचली अदालत से जमानत मिल गई थी।
पीएम मोदी पर आपत्तिजनक कार्टून: अभिव्यक्ति की आजादी का गलत इस्तेमाल हुआ :सुप्रीम कोर्ट
प्रधानमंत्री मोदी और संघ पर आपत्तिजनक कार्टून सोशल मीडिया पर साझा करने के मामले में सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अभिव्यक्ति की आजादी का गलत इस्तेमाल हुआ है। सुप्रीम कोर्ट ने आरोपी कार्टूनिस्ट हेमंत मालवीय की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की। हेमंत मालवीय ने अग्रिम जमानत के लिए याचिका दायर की थी। सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस सुधांशु धुलिया और जस्टिस अरविंद कुमार की पीठ ने याचिकाकर्ता से पूछा कि आपने ये सब क्यों किया? हेमंत मालवीय की तरफ से वरिष्ठ वकील वृंदा ग्रोवर सुप्रीम कोर्ट में पेश हुईं। वृंदा ग्रोवर ने कहा कि ‘यह मामला बेशक अरुचिकर और खराब है, लेकिन यह अपराध नहीं है? यह निंदनीय हो सकता है, लेकिन यह अपराध नहीं है।’ इस पर पीठ ने कहा कि यह बेशक अभिव्यक्ति की आजादी का उल्लंघन है। हेमंत ग्रोवर ने साल 2021 में कोरोना महामारी के दौरान ये आपत्तिजनक कार्टून सोशल मीडिया पर पोस्ट किए थे। इनके खिलाफ संघ कार्यकर्ता और वकील विनय जोशी ने इंदौर के लसूड़िया थाने में मई माह में शिकायत दर्ज कराई। पीठ ने याचिका पर सुनवाई 15 जुलाई तक टाल दी।
पति-पत्नी की बातचीत की गुप्त रिकॉर्डिंग बतौर साक्ष्य स्वीकार्य
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को वैवाहिक मामलों को लेकर अहम टिप्पणी की है। कोर्ट ने कहा कि ऐसे मामलों में पति-पत्नी की बातचीत की गुप्त रिकॉर्डिंग को बतौर साक्ष्य कोर्ट में स्वीकार्य किया जा सकता है। पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट के फैसले को खारिज करते हुए न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने कहा कि पति-पत्नी का एक-दूसरे पर नजर रखना इसका सबूत है कि विवाह मजबूत नहीं चल रहा है। इसलिए रिकॉर्डिंग का इस्तेमाल न्यायिक कार्यवाही में किया जा सकता है। पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में कहा था कि पति-पत्नी के बीच गुप्त बातचीत साक्ष्य अधिनियम की धारा 122 के तहत संरक्षित है और इसका इस्तेमाल न्यायिक कार्यवाही में नहीं किया जा सकता। पीठ ने निचली अदालत के आदेश को बहाल रखा और कहा कि वैवाहिक कार्यवाही के दौरान रिकॉर्ड की गई बातचीत पर ध्यान दिया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने पारिवारिक न्यायालय से रिकॉर्ड की गई बातचीत का न्यायिक संज्ञान लेने के बाद मामले को आगे बढ़ाने को कहा। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि पति-पत्नी द्वारा एक-दूसरे की बातचीत रिकॉर्ड करना अपने आप में इस बात का सबूत है कि उनका विवाह मजबूत नहीं चल रहा है और इसलिए इसका इस्तेमाल न्यायिक कार्यवाही में किया जा सकता है। न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना ने कहा कि अगर शादी इस मुकाम पर पहुंच गई है कि पति-पत्नी एक-दूसरे पर सक्रिय रूप से नजर रख रहे हैं, तो यह अपने आप में टूटे हुए रिश्ते का लक्षण है और उनके बीच विश्वास की कमी को दर्शाता है।बठिंडा की एक पारिवारिक अदालत ने अपने फैसले में पति को क्रूरता के दावों के समर्थन में अपनी पत्नी के साथ हुई फोन कॉल की रिकॉर्डिंग वाली एक कॉम्पैक्ट डिस्क का इस्तेमाल करने की अनुमति दी थी। पत्नी ने इसे उच्च न्यायालय में चुनौती दी और तर्क दिया था कि रिकॉर्डिंग उसकी जानकारी या सहमति के बिना की गई थी और यह उसकी निजता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन है। उच्च न्यायालय ने पत्नी की याचिका स्वीकार की और साक्ष्य को अस्वीकार्य करार देते हुए कहा कि गुप्त रिकॉर्डिंग निजता का स्पष्ट उल्लंघन है और कानूनी रूप से अनुचित है।

