नई दिल्ली (वी.एन.झा)। सुप्रीम कोर्ट ने पारिवारिक विवाद मामले में एक महिला को कड़ी फटकार लगाई। कोर्ट ने कहा कि बच्चे की कस्टडी पाने के लिए एक मां ने भारत और ब्रिटेन की न्यायिक व्यवस्था को धोखा दिया। इसका कारण वह बेहतर तरीके से जानती है। कोर्ट ने महिला के बेटे की कस्टडी उसके पिता को सौंपने के निर्देश दिए। न्यायमूर्ति जेके माहेश्वरी और न्यायमूर्ति विजय बिश्नोई की पीठ ने कहा कि यह मामला महिला और उसके पति के बीच विवाद को दिखाता है। इस विवाद से न केवल उनके वैवाहिक संबंध खराब हुए हैं, बल्कि उनके बच्चों पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। इनमें से एक बच्चा अपनी मां के साथ यूके में रह रहा है। शीर्ष अदालत ने कहा कि नवंबर 2010 में विवाह करने वाले दंपती के बीच संबंधों में लंबे समय से चल रही अनबन के कारण उनमें बच्चों से मिलने को लेकर विवाद और बढ़ गया। यह महज अहंकार का टकराव नहीं है, बल्कि चिंताजनक मानसिकता को दर्शाता है। यह नाबालिग बच्चों पर भारी पड़ सकता है। पीठ ने कहा कि इस परिस्थिति में हम यह सोचने पर मजबूर हैं कि बच्चों के कल्याण और हितों की सर्वोत्तम तरीके से रक्षा कैसे की जा सकती है?महिला के आचरण को लेकर पीठ ने कहा कि अपने बेटे को भारत में छोड़ते समय पिता को सूचित करना उसका प्राथमिक कर्तव्य था, लेकिन उसने ऐसा नहीं किया। उसका कर्तव्य है कि वह ब्रिटेन के उच्च न्यायालय को यह बताए, जहां उसके पिता ने आवेदन दिया था कि लड़का वहां उसके साथ नहीं था।पीठ ने कहा कि इस तरह के आचरण के कारण पिता को यूके उच्च न्यायालय के आदेश के बावजूद लड़के के साथ वर्चुअल मुलाकात करने से वंचित रखा गया और उनको पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के समक्ष बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर करनी पड़ी। कोर्ट ने कहा कि इससे लगता है कि महिला कभी भी अपने बेटे को उसके पिता से मिलने नहीं देना चाहती थी और अदालत के आदेश का सम्मान नहीं करना चाहती थी। भारत और ब्रिटेन की न्यायिक प्रणाली को मां ने धोखा दिया है, जिसके कारण वह खुद ही बेहतर जानती हैं।सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि महिला ने लंदन की एक पारिवारिक अदालत से तलाक हासिल किया था, जबकि पुरुष ने जींद की एक पारिवारिक अदालत से तलाक हासिल किया था। दोनों पक्ष तलाक चाहते हैं, लेकिन वे अलग-अलग न्यायालयों द्वारा दिए गए आदेशों को स्वीकार करने से इनकार कर देते हैं और उन्हें चुनौती देते हैं। उच्च न्यायालय द्वारा लड़के की अंतरिम हिरासत उसके पिता को सौंपना उचित था।न्यायालय ने निर्देश दिया कि लड़के की कस्टडी 30 सितम्बर तक उस व्यक्ति को सौंप दी जाए। कस्टडी सौंपे जाने के बाद माता-पिता एक महीने की अवधि के भीतर सक्षम न्यायालय के समक्ष संरक्षक एवं प्रतिपाल्य अधिनियम, 1890 के प्रावधानों के तहत उचित कार्यवाही दायर करेंगे।
लड़के की मां या भाई-बहन को हर शनिवार शाम पांच बजे से सात बजे तक ऑडियो या वीडियो देखने का अधिकार होगा।कोर्ट ने कहा कि मां के भारत आने पर उन्हें प्रत्येक रविवार को दोपहर एक बजे से शाम पांच बजे तक दोनों पक्षों द्वारा तय किए गए आपसी पसंद के स्थान पर मुलाकात का अधिकार होगा। लड़के के नाना-नानी को भी प्रत्येक रविवार को दोपहर एक बजे से शाम पांच बजे तक दोनों पक्षों द्वारा तय किए गए आपसी पसंद के स्थान पर मिलने का अधिकार होगा।पीठ ने कहा कि पिता अपने बेटे को संबंधित उच्च न्यायालय की अनुमति के बिना भारत के अधिकार क्षेत्र से बाहर नहीं ले जाएगा। किशोर न्याय बोर्ड या उस स्थान का मजिस्ट्रेट जहां बेटा अपने पिता के साथ रहेगा, बाल कल्याण समिति या जिले में उपलब्ध किसी भी समाज कल्याण अधिकारी के माध्यम से उसके के शारीरिक और मनोवैज्ञानिक स्वास्थ्य की देखरेख और निगरानी करेगा।महिला के पति ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि उसकी पत्नी मई 2021 में उसे बताए बिना या उसकी सहमति लिए बिना दोनों बच्चों के साथ भारत छोड़कर ब्रिटेन चली गई। बाद में उन्हें पता चला कि उनका नाबालिग बेटा अपने सास-ससुर के साथ भारत में है। इसके बाद उन्होंने पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया और अपने बच्चों की कथित अवैध हिरासत का मुद्दा उठाया।

