नई दिल्ली। 2014 में प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के पदभार संभालने के बाद से ब्रिक्स देशों के बीच भारत की स्थिति में महत्वपूर्ण और व्यापक रूप से स्वीकार्य परिवर्तन आया है। प्रधानमंत्री ने अब तक ब्रिक्स देशों के सभी शिखर सम्मेलनों में भाग लिया है। यह दर्शाता है कि भारत ब्रिक्स देशों के साथ-साथ सम्पूर्ण विश्व को अत्यधिक महत्व देता है। यूपीए-II के दौरान, भारत को अक्सर ब्रिक्स देशों में सबसे कमजोर कड़ी कहा जाता था। अंतरराष्ट्रीय मीडिया अक्सर इस बात पर सवाल उठाता था कि क्या भारत अपनी कमजोर आर्थिक बुनियाद का हवाला देकर इस समूह में शामिल हुआ है। कुछ वैश्विक टिप्पणीकारों ने तो ब्रिक्स देशों में इंडिया के स्थान पर इंडोनेशिया को ‘आई’ के रूप में रखने का विचार भी पेश किया है! यह संदेह भारत की निराशाजनक आर्थिक बुनियाद में निहित था। 2013 में, भारत की जीडीपी वृद्धि दर काफी धीमी हो गई थी, जो अन्य सभी ब्रिक्स देशों से पीछे रह गई थी। भारत ने केवल 5.5 प्रतिशत की वृद्धि दर दर्ज की, जबकि चीन 7.8 प्रतिशत, ब्राजील 6.1 प्रतिशत, रूस 6.5 प्रतिशत और दक्षिण अफ्रीका 5.7 प्रतिशत की दर से बढ़ा। भारत को अन्य देशों से अत्यधिक ऋण लेना पड़ता था, यह दोहरे अंकों की मुद्रास्फीति और निवेशकों के विश्वास में गिरावट के कारण आर्थिक संकट के कगार पर खड़ा था। तब भारत को दुनिया की 5 कमजोर अर्थव्यवस्थाओं में से एक कहा जाता था। इस बात को लेकर गंभीर चिंता थी कि भारत अपनी निवेश-ग्रेड रेटिंग खोने वाला पहला ब्रिक्स देश बन सकता है3 और 2013 तक भारत की आर्थिक वृद्धि की कहानी खत्म हो जाएगी। सभी प्रमुख आर्थिक संकेतकों में भारत ब्रिक्स के अन्य समकक्ष देशों से पीछे रहा। 2013 में औद्योगिक वृद्धि केवल 2 प्रतिशत रही, जो चीन (9.3 प्रतिशत), ब्राजील (8.4 प्रतिशत) और दक्षिण अफ्रीका (7 प्रतिशत) से बहुत पीछे थी। यहां तक कि पहले से ही औद्योगिक अर्थव्यवस्था वाले रूस ने भी 2.1 प्रतिशत के साथ थोड़ा बेहतर प्रदर्शन किया। मुद्रास्फीति भी सबसे खराब थी: जबकि चीन की मुद्रास्फीति दर 2.1 प्रतिशत, रूस में 7.4 प्रतिशत, ब्राजील में 6.5 प्रतिशत और दक्षिण अफ्रीका में 5.9 प्रतिशत थी, भारत की मुद्रास्फीति दर चिंताजनक 9.3 प्रतिशत थी। ब्रिक्स: औद्योगिक विकास और मुद्रास्फीति के मामले में भारत की स्थिति सबसे खराब” जैसी सुर्खियों ने उस समय वैश्विक सोच को प्रभावित किया। ब्रिक्स देशों के बीच सबसे कमजोर कड़ी कहे जाने वाले भारत की 2014 से अब तक की वृद्धि ने उसे ब्रिक्स देशों का एक प्रमुख विकास वाहक और ब्रिक्स का उज्ज्वल स्थान कहलाने के लिए प्रेरित किया है। भारत पिछले कुछ वर्षों से सबसे तेजी से बढ़ती बड़ी अर्थव्यवस्था रहा है और वित्त वर्ष 2024-2025 में भी भारत ने 6.5 प्रतिशत के साथ ब्रिक्स देशों में सबसे अधिक जीडीपी वृद्धि दर्ज की है, जो चीन (5 प्रतिशत), रूस (4.3 प्रतिशत), ब्राजील (3.4 प्रतिशत) और दक्षिण अफ्रीका (0.6 प्रतिशत) से आगे है। औद्योगिक विकास भी ऊंची छलांग लगाकर 6.4 प्रतिशत पर पहुंच गया है, जो चीन (5.8 प्रतिशत)7, रूस (4.5 प्रतिशत)8, ब्राजील (3.1 प्रतिशत) और दक्षिण अफ्रीका9 से आगे निकल गया है, जिसमें -3.5 प्रतिशत10 का संकुचन हुआ था। आईएमएफ से लेकर मॉर्गन स्टेनली और एचएसबीसी तक, भारत को संरचनात्मक सुधारों, राजकोषीय विवेक और निर्णायक नेतृत्व11 के कारण 2014 के बाद से हासिल किए गए व्यापक आर्थिक बदलाव के लिए सराहा जा रहा है।

