नई दिल्ली
बिहार में हो रहे स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) को लेकर सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। कोर्ट ने SIR पर रोक से इनकार कर दिया है।इसके साथ ही चुनाव आयोग से पूछा है- आधार कार्ड, वोटर आईडी और राशन कार्ड को मतदाता पहचान के लिए स्वीकार क्यों नहीं किया जा रहा है।चुनाव आयोग ने कहा कि ‘राशन कार्ड पर विचार नहीं किया जा सकता। यह बहुत बड़े पैमाने पर बना है, फर्जी होने की संभावना अधिक है।’ सुप्रीम कोर्ट ने कहा- अगर बात फर्जीवाड़े की है तो धरती पर कोई ऐसा डॉक्यूमेंट नहीं है, जिसकी नकल नहीं हो सके। ऐसे में 11 दस्तावेजों के आपके सूचीबद्ध करने का क्या आधार है?कोर्ट ने चुनाव आयोग से इन दस्तावेजों को शामिल करने पर विचार करने और मंगलवार सुबह 10:30 बजे तक जवाब देने को कहा है। कोर्ट ने कहा ‘कल हम सुनवाई करेंगे और बताएंगे कि इस मामले पर विस्तार से सुनवाई कब होगी।’चुनाव आयोग ने 27 जुलाई को SIR के पहले चरण के आंकड़े जारी कर दिए हैं। इसके मुताबिक बिहार में अब 7.24 करोड़ वोटर हैं। पहले यह आंकड़ा 7.89 करोड़ था। वोटर लिस्ट रिवीजन के बाद 65 लाख नाम सूची से हटा दिए गए हैं।हटाए गए नामों में वे लोग शामिल हैं, जो अब इस दुनिया में नहीं हैं या फिर कहीं और स्थायी रूप से रह रहे हैं या जिनका नाम दो वोटर लिस्ट में दर्ज था।इनमें से 22 लाख लोगों की मौत हो चुकी है। 36 लाख मतदाता स्थानांतरित पाए गए, जबकि 7 लाख लोग अब किसी और क्षेत्र के स्थायी निवासी बन चुके हैं।
अदालत ने जस्टिस वर्मा से पूछा- पहले कोर्ट क्यों नहीं आए?
‘नकदी विवाद’ पर अब 30 जुलाई को सुनवाई
नकदी मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस यशवंत की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सोमवार को सुनवाई हुई। जस्टिस वर्मा ने अपनी याचिका में आंतरिक जांच समिति की उस रिपोर्ट को अमान्य घोषित करने की अपील की है, जिसमें उन्हें नकदी बरामदगी विवाद में कदाचार का दोषी पाया गया है। इस सुनवाई को करते हुए जज ने कई गंभीर सवाल खड़े किए। सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और एजी मसीह की पीठ ने वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल से सवाल किया, जो याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए थे। कोर्ट ने पूछा कि आप पहले जांच समिति के सामने पेश क्यों हुए? क्या आप कोर्ट आए थे यह कहने कि वीडियो हटाया जाए? आपने जांच पूरी होने और रिपोर्ट जारी होने तक इंतजार क्यों किया? क्या आपने पहले वहां से अनुकूल आदेश पाने की उम्मीद की थी? पीठ ने यह भी कहा कि याचिका दाखिल करते समय जस्टिस वर्मा को जांच रिपोर्ट भी साथ लगानी चाहिए थी। कोर्ट ने यह भी सवाल उठाया कि याचिका में जिन पक्षों को शामिल किया गया है, वो सही तरीके से तय नहीं किए गए हैं। कोर्ट ने सिब्बल से कहा कि वे एक पेज का बुलेट पॉइंट सारांश तैयार करें और ‘मेमो ऑफ पार्टीज’ ठीक करें। वहीं, सिब्बल ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 124 के तहत एक न्यायाधीश को सार्वजनिक बहस का विषय नहीं बनाया जा सकता। सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर वीडियो का सार्वजनिक होना, मीडिया में बहस और जनता में हंगामा न्यायपालिका की गरिमा के खिलाफ है।

