प्रेजिडेंशियल रेफरेंस पर राज्य सरकारों को केंद्र का जवाब
नई दिल्ली
प्रेजिडेंशियल रेफरेंस को लेकर चल रही तीसरे दिन की सुनवाई में गुरुवार (21 अगस्त, 2025) को सरकार ने कहा कि हर समस्या को सुप्रीम कोर्ट में ही सुलझाना जरूरी नहीं है. उन्होंने कहा कि कुछ मामलों में मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति के बीच बातचीत होनी चाहिए. सरकार का पक्ष रखने के लिए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता सुप्रीम कोर्ट में पेश हुए.एसजी तुषार मेहता ने कहा कि अगर राज्यपाल कुछ मुद्दों को लेकर और खासतौर पर विधेयकों को लेकर अटके हुए हैं तो उसका न्यायिक समाधान के बजाय राजनीतिक समाधान निकालना चाहिए.सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता केंद्र की तरफ से उस सवाल का जवाब दे रहे थे, जिसमें सरकार से पूछा गया था कि अगर राज्यापाल विधेयकों को अनिश्चितकाल के लिए अटका कर रखते हैं, तो तब राज्य सरकार के पास क्या विकल्प हैं. इस पर एसजी तुषार मेहता ने कहा, ‘ऐसी स्थिति के लिए राजनीतिक समाधान हैं और ऐसे समाधान किए भी जा रहे हैं, लेकिन हर जगह ऐसा नहीं है और हर जगह ऐसा भी नहीं है कि राज्य सरकार इस स्थिति में सुप्रीम कोर्ट पहुंच जीती है. अगर राज्यपाल के पास बिल अटके हैं तो मुख्यमंत्री प्रधानमंत्री से आग्रह कर सकते हैं… राष्ट्रपति से मिल सकते हैं.’एसजी तुषार मेहता ने कहा कि ऐसे मसलों को सिर्फ फोन पर भी हल किया जा सकता है. ऐसे प्रतिनिधिमंडल भी हैं, जो पीएम या राष्ट्रपति के पास जाकर बताते हैं कि राज्यपाल के पास विधेयक लंबित हैं, उन्हें उन पर निर्णय लेने के लिए कहें. यह एक तरीका है और ऐसे ही और भी हैं.उन्होंने कहा कि अदालतों को ऐसे में समयसीमा निर्धारित करने का अधिकार नहीं मिल जाता है. तुषार मेहता ने पूछा कि अगर संविधान में समयसीमा नहीं है तो क्या कोर्ट इसे निर्धारित कर सकती है, भले ही उसका कोई औचित्य न हो.8 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु सरकार बनाम राज्यपाल मामले में आदेश देते हुए विधेयकों पर फैसला लेने के लिए राज्यपाल और राष्ट्रपति के लिए समयसीमा निर्धारित की थी, जिस पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने सुप्रीम कोर्ट से 14 सवाल पूछे थे.
न्यायिक सक्रियता, न्यायिक आतंकवाद नहीं बननी चाहिए : सीजेआई
राष्ट्रपति और राज्यपालों के लिए विधेयक को मंजूरी देने की समय सीमा तय करने के मामले की सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि न्यायिक सक्रियता, न्यायिक आतंकवाद नहीं बनना चाहिए। गुरुवार को सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की तरफ से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि ‘निर्वाचित लोगों को काफी अनुभव होता है और उसे कमतर नहीं आंका जाना चाहिए।’ इस पर सीजेआई जस्टिस बीआर गवई ने कहा कि ‘हमने कभी भी निर्वाचित लोगों के बारे में कुछ नहीं कहा है। मैंने हमेशा कहा है कि न्यायिक सक्रियता, कभी भी न्यायिक आतंकवाद या न्यायिक रोमांच नहीं बनना चाहिए।’

