नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने एक दुर्लभ मामले में संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपनी पूर्ण शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए उस व्यक्ति के खिलाफ पॉक्सो की कार्यवाही निरस्त कर दी है, जिसने नाबालिग लड़की के साथ यौन संबंध बनाए और बाद में उससे शादी कर ली थी. कोर्ट ने यह भी कहा, ‘यह अपराध वासना का नहीं, बल्कि प्रेम का परिणाम था.’जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस ए. जी. मसीह की पीठ ने कहा कि पीड़िता (अब पत्नी) ने कहा है कि उसकी शादी उस व्यक्ति के साथ हुई थी और उन दोनों का एक साल का बेटा भी है. वे अब खुशहाल जीवन जी रहे हैं. लड़की के पिता भी चाहते हैं कि उनकी बेटी के पति के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही समाप्त हो.पीठ ने कहा, ‘हम इस तथ्य से अवगत हैं कि अपराध केवल एक व्यक्ति के विरुद्ध नहीं, बल्कि समग्र समाज के विरुद्ध है. जब कोई अपराध होता है तो वह समाज की सामूहिक चेतना को आहत करता है और इसलिए समाज, अपने निर्वाचित सांसदों के माध्यम से यह निर्धारित करता है कि ऐसे अपराध के लिए क्या दंड होगा और अपराधी के साथ कैसा व्यवहार किया जाना चाहिए, ताकि उसकी पुनरावृत्ति न हो.’पीठ ने कहा कि आपराधिक कानून समाज की संप्रभु इच्छा का प्रकटीकरण है, लेकिन ऐसे कानून का क्रियान्वयन व्यावहारिक वास्तविकताओं से अलग नहीं है. पीठ ने 28 अक्टूबर के अपने आदेश में कहा, ‘न्याय प्रदान करने के लिए एक सूक्ष्म दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है. यह कोर्ट प्रत्येक मामले की विशिष्टताओं के अनुसार अपने निर्णय देता है, अर्थात आवश्यकतानुसार दृढ़ता और गंभीरता के अलावा दयालुता के साथ भी निर्णय सुनाता है.’पीठ ने कहा कि जहां तक संभव हो, किसी विवाद का अंत करना समाज के सर्वोत्तम हित में भी है. जस्टिस दत्ता ने पीठ की ओर से लिखे अपने फैसले में कहा कि सुप्रीम कोर्ट को न्याय, प्रतिरोध और सुधार के परस्पर विरोधी हितों में संतुलन बनाने की आवश्यकता होती है.पीठ ने कहा कि संविधान निर्माताओं ने इस कोर्ट को उचित मामलों में ‘पूर्ण न्याय’ करने की असाधारण शक्ति प्रदान की है और यह संवैधानिक शक्ति अन्य सभी शक्तियों से अलग है और इसका उद्देश्य कानून के कठोर प्रयोग से उत्पन्न होने वाली अन्याय की स्थितियों से बचना है।

