नई दिल्ली
चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट को साफ कर दिया है कि आधार कार्ड को केवल पहचान साबित करने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है, नागरिकता साबित करने के लिए नहीं। बिहार में जारी मतदाता सूची के विशेष संशोधन को लेकर उठी कानूनी बहस के बीच आयोग ने यह स्पष्टीकरण देते हुए कहा कि इस संबंध में जरूरी निर्देश पहले ही जारी किए जा चुके हैं। आयोग ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि आधार की कानूनी सीमाओं पर न्यायालय पहले ही स्पष्ट राय दे चुका है। चुनाव आयोग ने अपने जवाब में कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने 8 सितंबर को ही स्पष्ट कर दिया था कि मतदाता सूची के अद्यतन के दौरान आधार कार्ड का उपयोग केवल पहचान स्थापित करने के लिए किया जा सकता है। इसके आधार पर आयोग ने 9 सितंबर 2025 को बिहार के मुख्य निर्वाचन अधिकारी को निर्देश जारी किए थे कि आधार को नागरिकता प्रमाण के रूप में स्वीकार नहीं किया जाएगा। आयोग ने कहा कि यह प्रक्रिया निर्वाचन सूची में नाम जोड़ने या हटाने के दौरान पालन की जानी अनिवार्य है। यह जवाब उस इंटरलोक्यूटरी आवेदन पर दिया गया, जिसमें अधिवक्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय ने मांग की थी कि आधार का उपयोग केवल पहचान प्रमाण और प्रमाणिकरण के लिए ही सुनिश्चित किया जाए। उन्होंने कहा था कि यह प्रक्रिया कानूनी धाराओं की भावना के अनुरूप ही होनी चाहिए। आयोग ने अदालत को आश्वस्त किया कि उसके सभी मौजूदा निर्देश इसी प्रावधान का पालन करते हैं। चुनाव आयोग ने अपने जवाब में कहा कि यूआईडीएआई ने अगस्त 2023 में जारी कार्यालय ज्ञापन में स्पष्ट कर दिया था कि आधार कार्ड ना तो नागरिकता का प्रमाण है, ना निवास का और ना ही जन्मतिथि का। आयोग ने कहा कि इसी OM का हवाला बॉम्बे हाई कोर्ट ने भी दिया था, जिसमें कहा गया था कि जन्मतिथि साबित करने की जिम्मेदारी आधार धारक पर ही रहती है। आयोग ने बताया कि अदालत के आदेश और यूआईडीएआई दोनों ही स्पष्ट रूप से यह तय करते हैं कि आधार को सीमित भूमिका में ही इस्तेमाल किया जा सकता है।चुनाव आयोग ने याद दिलाया कि सुप्रीम कोर्ट ने पहले भी कहा था कि आधार नागरिकता या डोमिसाइल का प्रमाण नहीं है।

