नई दिल्ली
देश में अंग दान और प्रत्यारोपण की प्रक्रिया अब एक नए मोड़ पर पहुंच गई है। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को केंद्र सरकार को कई अहम निर्देश देते हुए कहा कि पूरे देश में एक जैसी नीति और एक जैसे नियम बनाए जाएं, ताकि अंग दान की प्रक्रिया पारदर्शी, निष्पक्ष और तेज हो सके। मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई और जस्टिस के विनोद चंद्रन की पीठ ने यह आदेश भारतीय सोसायटी ऑफ ऑर्गन ट्रांसप्लांटेशन की एक जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान दिया। कोर्ट ने कहा कि, आंध्र प्रदेश को 2011 के मानव अंग प्रत्यारोपण अधिनियम में हुए संशोधनों को अपनाने के लिए केंद्र उन्हें राजी करे। वहीं कर्नाटक, तमिलनाडु और मणिपुर जैसे राज्यों को तुरंत मानव अंगों और ऊतकों के प्रत्यारोपण के नियम, 2014 लागू करने को कहा जाए, क्योंकि अभी वे अपने अलग-अलग नियमों पर चल रहे हैं। कोर्ट का कहना था कि अलग-अलग राज्यों के अलग मानदंड मरीजों और दाताओं, दोनों के लिए असमानता पैदा करते हैं।पीठ ने केंद्र को निर्देश दिया कि वह एक राष्ट्रीय नीति तैयार करे, जिसमें, अंग आवंटन के लिए एक समान मॉडल नियम, लिंग और जाति आधारित भेदभाव को खत्म करने के उपाय और पूरे देश के लिए एक-सी दाता मानदंड शामिल हो। याचिकाकर्ता ने अदालत से कहा था कि अभी देश में ऐसा कोई एकीकृत राष्ट्रीय डेटाबेस नहीं है, जहां दाता और मरीजों की जानकारी एक जगह उपलब्ध हो। इससे प्रक्रिया धीमी पड़ती है और अमीर-गरीब के बीच खाई और चौड़ी होती जाती है। उन्होंने यह भी बताया कि आज भी 90% प्रत्यारोपण निजी अस्पतालों में होते हैं, जबकि सरकारी अस्पतालों की भागीदारी बहुत कम है।मणिपुर, नागालैंड, अंडमान-निकोबार और लक्षद्वीप जैसे राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में अभी तक राज्य अंग एवं ऊतक प्रत्यारोपण संगठन (एसओटीओ) ही नहीं है। कोर्ट ने केंद्र को निर्देश दिया कि वह राज्यों से बात कर इन संस्थाओं की स्थापना करे, ताकि हर राज्य में अंग दान की प्रणाली मजबूत हो सके।अदालत ने विशेष चिंता जताई कि जीवित दाताओं का कई जगह शोषण होता है। इसलिए उनके कल्याण के लिए विशेष दिशा-निर्देश, अंग दान के बाद उनकी देखभाल और किसी भी तरह के व्यावसायीकरण या शोषण को रोकने का स्पष्ट तंत्र बनाने को कहा गया।कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि, जन्म और मृत्यु पंजीकरण फॉर्म (फॉर्म 4 और 4ए) में यह कॉलम जोड़ा जाए कि क्या व्यक्ति की मृत्यु ब्रेन डेथ से हुई। और क्या परिवार को अंग दान का विकल्प बताया गया था। इससे ब्रेन-डेड मरीजों के अंगों को सम्मानजनक और कानूनी तरीके से दान में बदला जा सकेगा।
प्रदूषण के बीच निर्माण कार्य रुकने से बेरोजगार हुए मजदूरों को मिले गुजारा भत्ता
दिल्ली-एनसीआर और उत्तर भारत के कई राज्यों में वायु प्रदूषण के बढ़ते प्रकोप के चलते राज्य सरकारों ने इसे रोकने के लिए कई तरह के प्रतिबंधों का एलान किया है। इनमें एक प्रतिबंध ग्रेडेड एक्शन रिस्पॉन्स प्रोटोकॉल (ग्रैप) के लेवल 3 के तहत लगाया गया है। इसके चलते खराब वायु गुणवत्ता झेल रहे राज्यों-केंद्र शासित प्रदेशों में निर्माण कार्यों पर भी रोक लगी है। इस स्थिति में लाखों की संख्या में मजदूरों से उनका रोजगार छिन गया है। अब सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में दखल देते हुए ग्रैप-4 लागू करने वाली राज्य सरकारों को निर्देश दिया है कि ऐसे मजदूरों को गुजारा भत्ता दिलाया जाए। सुप्रीम कोर्ट की चीफ जस्टिस बीआर गवई के नेतृत्व वाली बेंच ने कहा कि दिल्ली, पंजाब, हरियाणा और राजस्थान में ग्रैप-3 लागू है और इन सरकारों को मजदूरों को निर्वाह भत्ता देने के लिए कहा गया है। साथ ही इन्हें वायु प्रदूषण कम करने के लिए कदम उठाने और इन कदमों की लगातार समीक्षा करने का भी आदेश दिया गया है।
दिल्ली के स्कूलों में स्पोर्ट्स फंक्शन न हों
दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि नवंबर-दिसंबर में स्कूलों में होने वाले स्पोर्ट्स फंक्शन पर रोक लगनी चाहिए। कोर्ट ने यह आदेश सीनियर एडवोकेट अपराजिता सिंह के सवाल पर दिया। अपराजिता सिंह ने कहा था कि, दिल्ली में मौजूदा वक्त में प्रदूषण के स्तर को देखते हुए ऐसी एक्टिविटी बच्चों को गैस चैंबर में डालने जैसा है।सीजेआई बीआर गवई, जस्टिस के. विनोद चंद्रन और जस्टिस एनवी अंजारिया की बेंच ने आगे कहा कि, वे पॉल्यूशन को लेकर हर महीने सुनवाई करेंगे ताकि इसका परमानेंट समाधान निकाला जा सके।इसके अलावा कोर्ट ने दिल्ली में GRAP-3 लागू होने के कारण बेरोजगार हुए कंस्ट्रक्शन वर्कर्स को भत्ता/आर्थिक सहायता देने का भी आदेश दिया।
संसद हमारे फैसले नहीं पलट सकती: सुप्रीम कोर्ट
ट्रिब्यूनल रिफॉर्म एक्ट 2021 के प्रावधान रद्द किए; 4 महीने में कमीशन बनाएं
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार के ट्रिब्यूनल रिफॉर्म एक्ट 2021 के कई महत्वपूर्ण प्रावधानों को रद्द कर दिया है। कोर्ट ने साफ कहा कि संसद मामूली बदलाव करके कोर्ट के फैसले को नहीं बदल सकती।कोर्ट ने कहा कि सरकार ने वही प्रावधान कानून में फिर से डाल दिए, जिन्हें पहले भी कोर्ट ने खारिज किया था। CJI बीआर गवई और जस्टिस के विनोद चंद्रन ने बुधवार को 137 पेज का फैसला सुनाया। 11 नवंबर को सुनवाई पूरी होने के बाद कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया था।पूरा मामला 2020 से जुड़ा है। नवंबर 2020 में सुप्रीम कोर्ट ने ट्रिब्यूनल के अध्यक्ष और सदस्यों का कार्यकाल पांच साल तय किया था। सरकार 2021 में नया कानून ले आई और कार्यकाल चार साल कर दिया। इसके बाद मद्रास बार एसोसिएशन ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई।

