- द्वारका में ‘गागर में सागर’ प्रवचन में बोले शंकराचार्य सदानंद सरस्वती
द्वारका। यहां श्रावण मास में चल रहे ‘गागर में सागर’ प्रवचन की शृंखला में रविवार को शारदापीठाधिश्वर शंकराचार्य सदानंद सरस्वती ने भारतीय होने का अर्थ समझाते हुए कहा कि जिस धर्मावलंबी के धर्मग्रंथों
में भारत शब्द का प्रयोग हुआ है और वो भारत को अपना देश मानते हैं, भारतभूमि को अपनी मां मानते हैं, उसी का यह भारत देश है। इसलिये इस देश का नाम अजनाभ वर्ष, आर्याव्रत और भारत वर्ष, जम्बुद्वीप आदि से जाना जाता है । भारत में रहने वाले 100 करोड़ हिन्दू सनातन धर्मी हैं और हिन्दुओं के वेदों में, पुराणों में, भागवत में, देवीतंत्र में, कालिका पुराण में, पारीजात हरण नाटक में, आदि अनेक धर्मग्रंथो में भारत शब्द का प्रयोग हुआ है। उन्होंने कहा कि यदि अर्वाचीन बात करें तो भारतीय संविधान के प्रथम पृष्ठ पर भारत शब्द का प्रयोग संविधान कर्ताओं ने किया है । हमारे राष्ट्रीय गीत में ‘भारत भाग्य विधाता’ शब्द का प्रयोग है, इसलिये भारत भूमि सनातन धर्म अवलंबित हिन्दुस्तान है। उन्होंने कहा कि अन्य संप्रदायवादियों को, मजहब को भारत में निवास की अनुमति संविधान प्रदान करता है अर्थात् भारत में उनको रहने का अधिकार है लेकिन कोई और यह प्रश्न उपस्थित करता है कि निश्चित रूप से कहना है, ये हिन्दुओं का देश है। हिन्दुओं की भूमि है। बाकी सभी रहने वाले आगंतुक हैं। हम हिन्दू स्वभाव से भारतीय हैं, दूसरे लोग भारतीय होने का प्रयास कर रहे हंै, जैसे रोगी होना किसी का स्वभाव नहीं है, हमारे शरीर में कोई रोग आ जाता है और चला जाता है। रोग आगन्तुक है, उसी तरह तमाम आगन्तुक मजहबी हमारे देश में आये और गये। असली वस्तु और बनावटी वस्तु यह क्रम तो अनादिकाल से चला आ रहा है, जैसे असली दूध, नकली दूध, असली घी, नकली घी, असली भारतीय, नकली भारतीय, यह विचार करना चाहिये। हम जिस धराधाम में निवास करते हैं, वहां हमारी शिक्षा-दीक्षा होती है, शासन और समाज की सुविधाओं का उपयोग करते है इस लिये हमें कृतघ्न होना चाहिये। हमारी संस्कृति ‘वसुधैव कुटुंबकम और सर्वे भवन्तु सुखिन:’ को घोषित करने वाली संस्कृति है, इसलिये इस में सभी का समावेश हो जाता है।