- द्वारका में श्रावण मास में चल रहे ‘गागर में सागर’ प्रवचन में बोले शंकराचार्य सदानंद सरस्वती
द्वारका। श्रावण में यहां चल रहे ‘गागर में सागर’ प्रवचन में सोमवार को शारदापीठाधिश्वर शंकराचार्य सदानंद सरस्वती ने कहा कि चिंतन में विवेकवती बुद्धि से जीवनयापन करते हैं तो मुक्ति हो जायेगी। ईश्वर से अलग होने के कारण जीव मोह माया के बंधन में फंस जाता है। रस्सी में सांप मानकर दूर भगाते हैं परंतु भ्रम दूर होने पर उसी को गले में लपेटते हैं। उन्होंने कहा कि दूरदर्शी पंडितों की संगति जीवन नौका को पार कराती है। जहाज पानी में तैरता नहीं लेकिन नाव में लगा देने से नाव पार हो जाती है। धर्म-सत्कर्म का पालन नहीं किया तो सब कुछ करते हुए भी कुछ नहीं किया। उन्होंने कहा कि सत्संग-उपदेश से अपरोक्ष ज्ञान प्राप्त होता है। माता-पिता की सेवा का फल आंतरिक प्रसन्नता के रूप में मिलता है। अंदान-प्रदान रहित, क्रय-विक्रयरहित अलौकिक सुख की मन में इच्छा हो जाये तो बड़ा आनंद मिलता है। उन्होंने कहा कि स्वाभाविक स्वभाव का त्याग करने पर दु:ख मिलता है।