श्रावण मास में ‘गागर में सागर’ पर प्रवचन में बोले शंकराचार्य सदानंद सरस्वती
द्वारका। यहां श्रावण मास में चल रहे ‘गागर में सागर’ प्रवचन की कड़ी में सोमवार को शारदापीठाधिश्वर शंकराचार्य सदानंद सरस्वती ने कहा कि जैसे गंगाजल का निर्मल जल हमारे मन को पवित्र बनाता है इसी प्रकार श्रीमद् भागवत का शब्दरुपी वाड्गम के शब्द हमारे अनेक पूर्वजन्म के संस्कारों का शोधन करते हैं। साक्षात् भगवान ने यह ज्ञान प्रथम चतु:श्लोकी भागवत के रूप में दिया और भगवान वेदव्यासजी ने इसे 18 हजार श्लोक द्वारा ऋषियों की परंपरा में शुकदेवजी ने राजा परिक्षित की शापनिवृत्ति के लिये सप्तह के रूप में ज्ञान दिया। उन्होंने कहा कि कथा श्रावण एवं चिंतन, मनन द्वारा इसे व्यवहार में अमल करके शनै: शनै: आत्मा के ऊपर चढ़ा मलावरण स्वच्छ होता है और अंत में मोक्ष प्राप्त होता है।
संसार के सभी जीव के प्रति दया-क्षमा-करुणा का भाव भक्ति के द्वारा बढ़ता है। वेद-उपनिषद आदि धर्मग्रंथ में वर्णित वर्णाश्रम धर्म का पालन करना सभी जीव के लिये अनिवार्य है। वर्णाश्रम धर्म के साथ ही प्रत्येक वर्ण के लिये बताये गये स्वधर्म का भी हमें पालन करना चाहिये जैसे ब्राह्मण का स्वधर्म वेदाध्ययन और ज्ञान के प्रकाश को फैलाना है परंतु आज धन के चक्कर में स्वधर्म का परित्याग करने से ब्राह्मण दु:खी होता है। उन्होंने कहा कि इसी प्रकार क्षत्रिय को अपना क्षात्रधर्म और अन्य वर्णों के लिये भी स्वधर्म का पालन करना जरुरी है। हमारी इस शास्त्र वर्णित परंपरा से विमुख होने के कारण भी जीव कष्टमय जीवन व्यतीत करते हैं।