द्वारका। यहां श्रावण मास में चल रहे ‘गागर में सागर’ प्रवचन की कड़ी में बुधवार को शारदापीठाधिश्वर शंकराचार्य सदानंद सरस्वती ने कहा कि सत्य ही परमात्मा का स्वरूप है, इसीलिये सत्य परिवर्तीत नहीं होता । जैसे लकडी में अग्नि विद्यमान होता है यानि अग्नि का अस्तित्व गुप्त रूप से अंदर पडा हुआ ही है फिर भी उसे जागृत करने पर प्रगट होता है और प्रगटाते है, इसी प्रकार अपने हजारों जन्मों के माया के आवरण से ढका हुआ जीव आवरण के बंधनों में फंसा हुआ होता है, उसे जप-तप-ध्यान-भक्ति इत्यादि साधनों से जागृत करना पडता है, तभी यह मायावी जीव का आभास दूर होता है। हमारे अंत:करण में सुषुप्त पडे धर्म के संस्कारो को जागृत करने का मौका हमें इस जन्म में मिला है । सुषुप्त पडे धम्र के संस्कारो को जागृत करने में सद्गुरु का आश्रय लेने से हमारी चेतना जागृत होकर सक्रिय बनती है। सद्गुरु का उपदेश और पथ-पथ पर मार्गदर्शन से आगे बढते है तब वेदादि शास्त्र ग्रंथों में वर्णित परंपरा और आदेशात्मक सूचनो का पालन करने में भागवत सप्ताह जैसे आयोजन आत्मकल्याण के मार्ग में आगे बढने के हमारे ध्येय की पूर्ति में नवसंचार देते है।