- श्रावण मास में शारदापीठाधिश्वर शंकराचार्य सदानंद सरस्वती की अगुवाई में जारी है ‘गागर में सागर’ पर प्रवचन
द्वारका। श्रावण मास में यहां चल रहे ‘गागर में सागर’ प्रवचन में गुरुवार को शंकराचार्य सदानंद सरस्वती ने भगवान श्रीकृष्ण से जुड़ा एक वृतांत सुनाते हुए बताया कि द्वारिका के सुधर्मा हॉल में राजा का दरबार लगा हुआ था। महाराजा उग्रसेन विचार-विमर्श कर रहे थे। भगवान श्रीकृष्ण भी सभा में उपस्थित थे। नगर के एक धनी यादव सत्रजीत सभा में आये और महाराजा को प्रणाम किया। सत्रजीत के पास स्यमंतक मणि था। यह मणि अत्यंत प्रभावशाली था और संपत्ति का उपयोग सर्व के लिये उपयोग में आ सके इसलिये ऐसी कीमती वस्तु राजा के पास होनी चाहिये। यह मणि से प्रतिदिन आठ बार सोना मिलता था। यह राशि प्रजा के कल्याण के लिये उपयोग में आनी चाहिये यह सोचकर श्रीकृष्ण ने सत्रजीत से कहा, आपको यह मणि महाराजा को अर्पण कर राजकोष में वृद्धि हेतु देना चाहिये।सत्यजीत भगवान सूर्य के अनन्य उपासक थे। आराधना से प्रसन्न होकर सूर्यदेव ने उसे एक मणि दी थी जो स्वयंभू प्रतिदिन आठ बार सोना देती थी। राजसभा के बीच में कृष्ण के कहने पर भी उसने प्रजा कल्याण हेतु मणि देने से इंकार कर दिया और सभा त्याग करके चला गया। घर जाकर उसने मणि रख दिया और दूसरे काम में लग गया। इतनी देर में उसका छोटा भाई शत्रुघनु आया और मणि पहन कर जंगल में शिकार करने चला गया। जंगल में शेर मिल गया। उसने शत्रुघनु पर हमला किया और उसे मार दिया। शेर ने चमकते हुए मणि को ले लिया।