- श्रावण मास में ‘गागर में सागर’ पर प्रवचन जारी
द्वारका। श्रावण मास में यहां चल रहे ‘गागर में सागर’ प्रवचन में सोमवार को शारदापीठाधिश्वर शंकराचार्य सदानंद सरस्वती ने कहा कि कर्म दो प्रकार के होते है। सकाम कर्म और निष्काम कर्म। मनुष्य सहित सभी प्राणी में जो सामान्य जरूरत है वह कुदरती है लेकिन हम अपनी बुद्धि के उपयोग से श्रेष्ठ बन सकते हैं, जो अन्य प्राणी नहीं कर सकते। उन्होंने कहा कि मनुष्य जन्म का उद्देश्य क्या है यह हम सबको जानना चाहिये। सनातन भारतीय संस्कृति हजारों वर्ष प्राचीन है और यह कोई संप्रदाय नहीं अपितु जीवन जीने की कला है । श्रीमद् गभवद् गीता में अर्जुन को जो उपदेश दिया गया वह हम सभी के लिये भी है। अर्जुन अपना स्वधर्म भूल गया और जो संबंधी अनित्य है उसके प्रति मोह हो गया । इस मोह भंग के लिये उन्होंने उपदेश दिया। उन्होंने कहा कि जो कर्म करने से हम जन्म-मरण के बंधन फिर से बंध सकते हैं उससे कैसे बच सकते हैं इस बात को ज्ञानयोग, कर्मयोग और भक्तियोग के उपदेश द्वारा समझाने का सफल प्रयास गीता में श्रीकृष्ण ने किया है। हमें अपना जीवन व्यवहार कैसे करना चाहिये यह शास्त्रों के वचन सिद्ध संतो के मार्गदर्शन एवं सद्गुरु की शरण में जाने से मिल सकता है । स्वधर्म का पालन श्रेष्ठ है और परधर्म हमें पतन की और ले जाता है।