नई दिल्ली। जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (यूएनएफसीसीसी) ने हाल ही में एक रिपोर्ट जारी की है। जिसमें देशों और गैर पार्टी हितधारकों द्वारा की गई प्रस्तुतियों का सार दिया गया है। यूएनएफसीसीसी रिपोर्ट के मुताबिक, भले ही विकसित देशों के कारण कार्बन बजट में कमी आई, लेकिन 2020 से पहले की अवधि की अपनी प्रतिबद्धताओं को पूरा करने में विकसित राष्ट्र विफल रहे हैं। वहीं रिपोर्ट में कहा गया है कि कई देशों ने माना कि वैश्विक स्टॉकटेक परिणाम से यह भी सुनिश्चित होना चाहिए कि विकसित देशों को उत्सर्जन में कमी, परिचालन इक्विटी, सामान्य लेकिन विभेदित जिम्मेदारियों की जिम्मेदारी लेनी चाहिए। साथ ही कहा गया कि COP28 में अधूरी जलवायु प्रतिबद्धताओं पर विकसित देशों को जांच का सामना करना पड़ सकता है।जलवायु विज्ञान कार्बन बजट को ग्रीनहाउस गैसों की मात्रा के रूप में परिभाषित करता है, जो ग्लोबल वार्मिंग के एक निश्चित स्तर (इस मामले में 1.5 डिग्री सेल्सियस) के लिए उत्सर्जित किया जा सकता है। विकसित देश पहले ही वैश्विक कार्बन बजट का 80 प्रतिशत से अधिक इस्तेमाल कर चुके हैं, जिससे भारत जैसे देशों के पास भविष्य के लिए बहुत कम कार्बन जगह बची है।वैश्विक स्टॉकटेक से अपनी अपेक्षाओं के संबंध में यूएनएफसीसीसी को अपने प्रस्तुतीकरण में कई विकासशील देशों ने इस बात पर जोर दिया कि विकसित देशों की 2020 से पहले की महत्वाकांक्षा और कार्यान्वयन में अंतर हैं। उनकी 2030 और 2050 की शमन महत्वाकांक्षाएं अपर्याप्त हैं।दुनिया के सबसे वरिष्ठ जलवायु वैज्ञानिकों के एक संगठन, इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) के मुताबिक, वार्मिंग को लगभग 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के लिए वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को 2025 से पहले चरम पर ले जाना होगा और 43 प्रतिशत तक कम किया जाना चाहिए। विकसित देशों से वैश्विक औसत (2050) से काफी पहले नेट-शून्य तक पहुंचने और जितनी जल्दी हो सके शुद्ध नकारात्मक उत्सर्जन हासिल करने का आह्वान भी वैश्विक स्टॉकटेक परिणाम का हिस्सा हो सकता है। gujaratvaibhav.com