चेन्नई
सनातन धर्म के मुद्दे पर मद्रास हाईकोर्ट ने शासन में बैठे लोगों को विखंडनकारी टिप्पणियां करने पर आगाह किया। एक याचिका पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने कहा, सत्ता में बैठे लोगों को विभाजनकारी प्रवृत्ति वाली टिप्पणियों के खतरे का एहसास होना चाहिए। साथ ही कोर्ट ने डीएम के कुछ मंत्रियों के खिलाफ कार्रवाई करने में पुलिस के ढीले रवैये पर कड़ी फटकार लगाई। सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति जी जयचंद्रन ने टिप्पणी करते हुए कहा, सत्ता में बैठे लोगों को नशीली दवाओं और अन्य सामाजिक बुराईयों को मिटाने पर ध्यान देना चाहिए। ऐसे विचारों का प्रचार करने से खुद को रोकें, जो विचारधारा जाति और धर्म के नाम पर लोगों को बांटेंगे। न्यायाधीश ने याचिकाकर्ता मगेश कार्तिकेयन द्वारा दायर याचिका को खारिज करते हुए आदेश में ये टिप्पणी की। याचिका में द्रविड़ विचारधारा को खत्म करने, तमिलों के समन्वय के लिए सम्मेलन आयोजित करने की अनुमति देने के लिए पुलिस को निर्देश देने की मांग की थी। यह याचिका सितंबर में सनातम धर्म उन्मूलन सम्मेलन के मद्देनजर दायर की गई थी। जिसमें डीएमके के मंत्री उदयनिधि स्टालिन ने भाग लिया था। जिसमें उन्होंने सनातन धर्म के खिलाफ अभद्र टिप्पणियां की थी, जिसके बाद से एक बड़ा विवाद खड़ा हो गया था।सनातन धर्म विरोधी सम्मेलन में भाग लेने वाले मंत्रियों के खिलाफ कार्रवाई में विफल होने पर पुलिस को हाईकोर्ट ने सुनवाई में जमकर लताड़ा। न्यायाधीश ने कहा, यह कर्तव्य की लापरवाही थी। कोई भी अदालत से यह उम्मीद नहीं कर सकता कि वह जनता के बीच दुर्भावना पैदा करने वाले विचारों का प्रचार करने में उनकी सहायता करेगी।कोर्ट ने कहा, यदि याचिकाकर्ता के अनुरोध को स्वीकार कर लिया जाता है, तो इससे शांति में और अधिक व्यवधान पैदा होगा, जो पहले से ही पद की शपथ लेने वाले व्यक्तियों के समर्थन में कुछ सीमांत समूहों के तरीकों से तंग आ चुके हैं। अदालत ने पाया कि रिट याचिका में पारित पिछला आदेश द्रविड़ विचारधारा के बारे में विचार व्यक्त करने के संबंध में था। न्यायाधीश ने कहा, याचिकाकर्ता का दावा है कि ऐसी बैठक आयोजित करना मौलिक अधिकार है। यह न्यायालय इस दृष्टिकोण से सहमत नहीं हो सकता है। इस देश में किसी भी व्यक्ति को विभाजनकारी विचारों को प्रचारित करने और किसी भी विचारधारा को खत्म करने के लिए बैठकें आयोजित करने का अधिकार नहीं हो सकता है।